ऐसा न होने पर दोनों सेनाओं के बीच आमने-सामने टकराव की स्थिति रुक-रुककर बनती रहेगी। वीपी मलिक ने एक मीडिया हाउस से बातचीत में कहा कि लद्दाख क्षेत्र में चीन की आक्रामकता तीन बातों से समझने की जरूरत है। पहला, धारा 370 ( Article 370 ) को समाप्त करने के बाद भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर ( Jammu-Kashmir ) और लद्दाख ( Ladakk ) के केंद्र शासित प्रदेश बनाने के निर्णय को चीन सीधे तौर पर खारिज कर चुका है। दूसरा पिथौरागढ़ से लिपुलेख दर्रे तक की सड़क सहित उत्तरी सीमा पर ढांचागत संरचनाओं के विकास को रणनीतिक लिहाज से ड्रैगन भारत के पक्ष में मानता है। इससे भारत की स्थिति पहले की तुलना में ज्यादा मजबूत हुई है।
तीसरा कारण यह है कि पोस्ट-कोविद—19 ( Post Covid-19) दौर में चाइना ड्रीम ( China Dream ) को झटका लगने की आशंका ने शी जिनपिंग ( Xi Jinping ) चिंतित हो उठे हैं। गैलावान घाटी और पैंगोंग त्सो के उत्तर में आसपास चीना सेना पीएलए ( PLA ) द्वारा सीमा का उल्लंघन रणनीतिक और सामरिक है। इस क्षेत्र में भारतीय सेना 24 घंटे नजर रख पाने में सक्षम नहीं है। इस बात का लाभ उठाकर चीनी सेना इस क्षेत्र में सामरिक घुसपैठ करती हैं। सरकार देश दे तो हमारे सैनिक भी ऐसा कर सकते हैं।
Tamilnadu : एमजीआर यूनिवर्सिटी का दावा – 15 जुलाई तक Chennai छू लेगा 1.5 लाख Corona केस का आंकड़ा इसके उलट नाकू ला क्षेत्र में चीनी सेनाओं की घुसपैठ को पाकिस्तान के साथ सांठगांठ के रूप में देखना जरूरी है। LAC के पार किसी भी घुसपैठ को अतिक्रमण मानना होगा।
मेरा मानना है कि पैंगोंग त्सो के उत्तर में पीएलए के सैनिकों ने फिंगर 4 और 8 के बीच विवादित क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। इस क्षेत्र में दोनों पक्ष अभी तक गस्त करते रहे हैंं। गैलवान घाटी में उन्होंने श्योक नदी से स्थिति को अपने नियंत्रण में ले लिया है। हमारे गश्ती दल को एलएसी तक जाने की क्षमता से वंचित कर दिया है।
वहीं काराकोरम दर्रा, अक्साई चिन, शक्सगाम घाटी और पश्चिमी तिब्बत क्षेत्र में चीन अपने हितों को सुनिश्चित करने करने के लिए लद्दाख क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। अपनी पहुंच सुनिश्चित करने के साथ पाकिस्तान ( Pakistan ) के साथ सांठगांठ कर वो सियाचिन ग्लेशियर में भी भारत के लिए समस्या पैदा कर सकता है।
World Environment Day : पीएम मोदी ने जैव विविधता को बचाने के लिए सभी से आगे आने की अपील की फिर पिछले तीन दशम में 22 बार विशेष प्रतिनिधिमंडल स्तर पर बातचीत के बावजूद दोनों देश के बीच नीतिगत स्तर पर विवादित क्षेत्रों को लेकर एक मान्य धारणा भी नहीं बनना चीन की परेशानी कारण है।
1993 के बाद से भारत और चीन ने LAC के आसपास सैन्य-स्तरीय विश्वास-निर्माण उपायों पर पांच समझौतों और प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं। लेकिन हाल की घटनाओं से साफ है कि अब यह तंत्र प्रभावी नहीं हैं। इसलिए LAC जल्द तय करने की जरूरत है। ऐसा न होने पर भारत और चीन LAC के साथ बहुत बड़ी ताकतों को तैनात कर सकते हैं। जैसा कि पाकिस्तान के साथ LoC पर दोनों देश की सेनाएं तैनात हैं।