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भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गलवान घाटी में पांच मई को हिंसा हुई थी, जिसे व्यापक रूप से रिपोर्ट भी किया गया था। पैंगोंग झील इलाके में भी झड़पें हुईं, लेकिन स्थिति को नियंत्रण में लाया गया। श्रीवास्तव ने कहा, आमने-सामने की स्थिति को जमीनी कमांडरों द्वारा द्विपक्षीय समझौतों और प्रोटोकॉल के प्रावधानों के अनुसार सुलझाया गया। उन्होंने कहा कि तभी चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव पैदा करना शुरू कर दिया। श्रीवास्तव ने कहा, मई के मध्य में चीन ने पश्चिमी क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों में यथास्थिति को बदलने की कोशिश की।
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इसके जवाब में भारत ने हाल के दिनों में इस क्षेत्र में सामने आए घटनाक्रम पर स्थिति स्पष्ट कर दी है। भारत ने 20 जून को प्रासंगिक तथ्यों के साथ स्पष्ट रूप से कहा था कि चीनी कार्रवाई के कारण क्षेत्र में तनाव बढ़ा है और 15 जून की हिंसक झड़प भी इसका परिणाम थी, जिसमें सैनिक शहीद हो गए। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि नई दिल्ली ने राजनयिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से बीजिंग के कार्यों के खिलाफ विरोध दर्ज किया और यह स्पष्ट किया कि ऐसा कोई भी परिवर्तन अस्वीकार्य है।
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इसके बाद दोनों पक्षों के वरिष्ठ कमांडरों ने छह जून को मुलाकात की और एलएसी पर तनाव को कम करने के लिए सहमति व्यक्त की, जिसमें पारस्परिक कदम उठाने की बात शामिल थी।
श्रीवास्तव ने कहा कि दोनों पक्ष एलएसी का सम्मान और नियमों का पालन करने तथा यथास्थिति को बदलने वाली कोई कार्रवाई न करने पर सहमत हुए थे। उन्होंने कहा, लेकिन, चीनी पक्ष एलएसी के संबंध में बनी इस समझ से गलवान घाटी में मुकर गया और उसने एलएसी के बिलकुल पास ढांचे खड़े करने की कोशिश की। जब इस प्रयास को नाकाम कर दिया गया तो चीनी सैनिकों ने 15 जून को हिंसक कार्रवाई की, जिससे 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए।
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श्रीवास्तव ने कहा, जब यह कोशिश विफल कर दी गई तो चीनी सैनिकों ने 15 जून को हिंसक कार्रवाई की, जिसका परिणााम सैनिकों के हताहत होने के रूप में निकला। इसके बाद, दोनों पक्षों की क्षेत्र में बड़ी संख्या में तैनाती है, हालांकि सैन्य एवं कूटनीतिक संपर्क जारी हैं। उन्होंने कहा कि चीनी पक्ष मई के शुरू से ही एलएसी पर बड़ी संख्या में सैनिक और युद्धक सामग्री जुटा रहा है। उन्होंने कहा कि यह विभिन्न द्विपक्षीय समझौतों के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है, खासकर 1993 में सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए हुए महत्वपूर्ण समझौते के प्रावधानों के अनुरूप तो बिलकुल नहीं है।
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इसमें कहा गया है कि प्रत्येक पक्ष एलएसी के साथ लगते क्षेत्रों में अपने सैन्य बलों को न्यूनतम स्तर पर रखेंगे। उन्होंने कहा कि जाहिर तौर पर भारतीय पक्ष को भी जवाबी तैनाती तो करनी ही थी, जिसके बाद क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि एलएसी का सम्मान और कड़ाई से पालन करना सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति का आधार है।