COVID-19 treatments: अस्पतालों-बीमा कंपनियों में तकरार, Supreme Court सख्त और मरीज लाचार
Delhi, Mumbai, Kolkata के निजी अस्पतालों ( hospital ) में खर्च है भारी, Coronavirus Testing, ICU, PPE Kit पड़ती है काफी महंगी।
Non-ICU में एक दिन का खर्च 14 हजार से 32 हजार तक पड़ता है, बीमा कंपनियों ( insurance companies ) में बढ़ रही है बिल पास करने की परेशानी।
कोरोना के इलाज के खर्च ( COVID-19 treatments ) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने केंद्र सरकार से एक सप्ताह में मांगा है जवाब, कल समाप्त हो रही है मोहलत।
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नई दिल्ली।कोरोना वायरस महामारी ( coronavirus pandemic ) के बीच इस बीमारी के इलाज ने नया बखेड़ा खड़ा कर दिया है। एक ओर तो इस जानलेवा वायरस ( coronavirus ) की गिरफ्त में आने वाले मरीज पहले ही परेशान हो जाते हैं, ऊपर से निजी अस्पतालों में उनके इलाज का खर्च ( COVID-19 treatments ) उनकी जान हलक में ले आता है। अस्पतालों ( hospital ) के बिल को लेकर बीमा कंपनियों ( insurance companies ) से तकरार भी हो रही है। वहीं, कुछ दिन पहले खर्च की अधिकतम सीमा तय किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) भी सख्त रवैया अपना चुका है और केंद्र ( Centre Govt ) को नोटिस दे चुका है।
COVID-19 मरीजों पर भारी पड़ रहा इलाज का खर्च, अस्पतालों का बिल सुनकर माथा पकड़ लेंगे आप मई के अंतिम सप्ताह में इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में दिल्ली ( Delhi ), मुंबई ( Mumbai ) और कोलकाता ( Kolkata ) के प्रमुख निजी अस्पतालों ( private hospital ) में भर्ती किए गए छह कोरोना वायरस रोगियों के विस्तृत बिलों की जांच की। इस दौरान छह दिनों के इलाज के लिए बिल 2.6 लाख रुपये से लेकर लगभग एक महीने के लिए 16.14 लाख रुपये तक आए। इन सभी मामलों में एक को छोड़कर बाकी सभी मरीज ठीक हो गए।
इनमें ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि दो रोगियों के पास बीमा कवरेज नहीं था और शेष चार की बीमा कंपनियों ने अस्पताल के पूरे बिल को कवर नहीं किया। मरीजों को 60,000 से लेकर 1.38 लाख रुपये अपनी जेब से खर्च करने पड़े। इन सभी बिलों में औसतन 4500 रुपये का COVID-19 जांच के लिए RT-PCR टेस्ट एक छोटा सा ही हिस्सा है।
वहीं, अस्पतालों द्वारा कोरोना वायरस मरीजों के इलाज के लिए बनाए जा रहे भारी-भरकम बिलों के चलते अब बीमा कंपनियों से इनकी तकरार होने लगी है। एक निजी बीमा कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के मुताबिक क्या अस्पताल पहले अपने मेडिकल इक्विपमेंट्स को सैनेटाइज नहीं करते थे, जो आजकल वो इसके लिए अलग से चार्ज करने लगे हैं। इस कठिन वक्त में अस्पताल मरीजों से हर चीज का पैसा वसूल रहे हैं।
दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर ने तो ओपीडी में आने वाले मरीज से हर विजिट में 150 रुपये सैनेटाइजेशन चार्ज के रूप में अलग से वसूलना शुरू कर दिया है। और इसके एवज में मरीज को केवल कुछ बूंदें हैंड सैनेटाइजर की ही दी जाती हैं। इसके अलावा तमाम निजी अस्पतालों ने मरीजों को केवल मास्क पहनने पर ही एंट्री देने का आदेश जारी कर दिया है और मेडिकल स्टोर में इन्हें ऊंची कीमत पर बेचा जा रहा है।
उधर, देश के निजी अस्पतालों में कोरोना वायरस मरीजों के इलाज पर आने वाले खर्च की एक अधिकतम सीमा तय किए जाने के संबंध में दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस संबंध में जवाब तलब किया है।
निजी अस्पतालों में कोरोना मरीज के इलाज की सीमा पर सुप्रीम कोर्ट ने किया केंद्र से जवाब तलब न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को इस संबंध में नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल देने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता अविशेक गोयनका ने उच्चतम न्यायालय से निजी अस्पतालों में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज के खर्च की अधिकतम सीमा तय करने का अनुरोध किया था।
याचिका के मुताबिक केंद्र सरकार को समान मानक वाले ऐसे केंद्रों में इलाज की सांकेतिक दरों को भी निर्धारित करने के निर्देश दिए जाएं। वहीं, बीमा कंपनियों को मेडिक्लेम का समयबद्ध निपटान किए जाने के साथ ही सभी बीमित मरीजों को कैशलेस इलाज की सुविधा प्रदान किए जाने के निर्देश देने की अपील की गई।