प्रतिशत और उतराखंड में 7.6 प्रतिशत की रफ्तार से नए मामलों में कमी देखी गई है।
दूसरी ओर, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के तमाम राज्यों में नए केस में गिरावट की दर तमिलनाडु में 2.7 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश में 4.2 प्रतिशत है। इस तरह आंकड़ों से स्पष्ट है कि उत्तर भारत में दक्षिण की अपेक्षा कोरोना के नए मामलों में दोगुनी तेजी से कमी आ रही है। प्रत्येक राज्य के लिए गिरावट की दर का आकलन तब से किया गया है, जब सात दिनों के एक्टिव केस का औसत पीक पर पहुंच गया। 8 मई को पीक पर पहुंचने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर रोज के औसत नए मामले 3.7 प्रतिशत कम हो गए।
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वायरस के अलग-अलग वेरिएंट की संभावनाविशेषज्ञों की मानें तो दक्षिण और उत्तर के राज्यों में कोरोना के नए केस की रिपोर्टिंग सिस्टम में अंतर है। इसमें यह इशारा किया गया है कि उत्तर के राज्यों में कोरोना की रिपोर्टिंग में कुछ खामियां हैं और ऐसे में यह फर्क दिखाई पड़ रहा है। इसमें दो और वजहें हो सकती हैं। यह संभव है कि विभिन्न क्षेत्रों में वायरस के अलग-अलग वेरिएंट हों। साथ ही, अलग-अलग आबादियों के बीच सीरो पॉजिटिविटी निर्धारित करने से पहले यह देखना जरूरी है कि कौन सा संक्रमण संबंधित व्यक्ति के संपर्क में आया है।
देश में उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की बात करते हैं। आंकड़ों के आधार पर नए केस में गिरावट की दर दूसरी लहर में सबसे ज्यादा प्रभावित उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को शामिल कर सकते हैं। महाराष्ट्र 21 अप्रैल को 65 हजार 447 मामलों (एक हफ्ते का औसत) के साथ पीक पर पहुंच गया। वहीं, उत्तर प्रदेश 27 अप्रैल को लगभग उसी समय 35 हजार 10 मामलों के साथ पीक पर पहुंचा। फिर भी 3 जून को महाराष्ट्र में औसत 17 हजार से अधिक मामलें सामने आए, जबकि इसी दिन उत्तर प्रदेश में यह संख्या घटकर एक हजार 742 हो गई।