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कुछ ऐसा ही मामला केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सामने आया है। दरअसल, मंत्रालय को शिकायत मिली है कि लॉकडाउन के कठिन दिनों में कई निजी इंजीनियरिंग और प्रबंधन संस्थानों ने अपने अध्यापकों और बाकी स्टाफ कर्मियों को मार्च का वेतन नहीं दिया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने आखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को यह शिकायत भेजी थी। एआइसीटीइ ने इसको गंभीरता से लेते हुए इन संस्थानों को वेतन देने के लिए कहा है।
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एआइसीटीइ के अध्यक्ष अनिल सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि एआइसीटीइ से मंजूर संस्थानों से अपील की जाती है कि संकट के समय अगर कोई निजी संस्थान वेतन नहीं देता है तो कर्मचारियों के परिवार में भारी मानसिक दबाव और भुखमरी की समस्या पैदा हो सकती है। उन्होंने कर्मचारियों को तुरंत वेतन देने की अपील की। एआइसीटीइ अध्यक्ष ने कहा कि उन्हें इस संबंध में शिकायत मिली थी कि कई संस्थानों ने मार्च 2020 का वेतन नहीं दिया है। उन्होंने इस समय को राष्ट्रीय आपातकाल बताते हुए कहा कि पूरा देश कोरोना वायरस के संकट में है, इसलिए संबंधित कर्मचारियों का वेतन सुनिश्चित किया जाए।
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वहीं मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि इन संस्थानों के कई शिक्षकों और स्टाफ कर्मियों ने इसकी शिकायत की थी। एआइसीटीइ को भी ऐसी शिकायतें मिली थी। एआइसीटीइ के मुताबिक देश में 10 हजार से ज्यादा इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और फार्मेसी के संस्थान हैं। इनमें करीब छह लाख शिक्षक और स्टाफ काम करता है। सूत्रों का कहना है कि इनमें से कइयों को तो मंजूर वेतन से काफी कम राशि मिली है। एआइसीटीइ के अधिकारी भी संस्थानों द्वारा इस कदम को अनुचित मानते है। उनका कहना है कि निजी कॉलेज अपने छात्रों से सिमेस्टर की शुरूआत में ही फीस ले लेते हैं और कोरोना वायरस के संकट की वजह से उनकी आय में अभी कोई फर्क नहीं पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस संबंध में नियोक्ताओं से अपील की थी और बाद में श्रम मंत्रालय ने भी इस संबंध में एडवायजरी जारी की थी। लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि ऐसी परिस्थितियों में ये संस्थाएं केंद्र सरकार के आदेशों का अनुपालन कब तक और कैसे कर पाएंगी?