इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता व लीड्स विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थॉमस स्लेटर के अनुसार अनुमान है कि समुद्री जल स्तर में हर एक सेंटीमीटर की वृद्धि से करीब एक लाख लोग विस्थापित होंगे। इससे तटीय क्षेत्रों में प्राकृतिक आवास व वन्य जीव खत्म हो जाएंगे।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जितनी बर्फ पिघल रही है उसका चौथाई हिस्सा ग्लेशियर का ही है। ग्लेशियर करोड़ों लोगों के जीवन का आधार हैं। इनसे पिघलने वाला साफ जल कई नदियों को जीवन देता है, जिससे कृषि, पीने का पानी के रूप में प्रयोग किया जाता है।
पहाड़ों के ऊपर उडऩे वाली धूल तेजी से बर्फ को पिघलाने में मदद कर रही है क्योंकि धूल में सूरज की रोशनी अवशोषित करने की क्षमता होती है। यही वजह है कि एशिया और अफ्रीका में तेजी से बढ़ती धूल बर्फ को पिघला रही है।
ग्लेशियरों, ग्रीनलैंड, आइसलैंड में हर साल पिघलने की गति बढ़ रही है, लेकिन आर्कटिक में 13.1 फीसदी प्रति दशक की दर से इसमें कमी आ रही है।
1994 से 2017 के बीच
610,000 करोड़ टन पहाड़ों पर मौजूद ग्लेशियरों से
380,000 करोड़ टन ग्रीनलैंड से बर्फ पिघल चुकी
250,000 करोड़ टन बर्फ पिघली अंटार्कटिक से 1994 के बाद
40 हजार करोड़ टन ग्लेशियर से बर्फ प्रति वर्ष पिघल रही
29.4 हजार करोड़ मीट्रिक टन प्रति वर्ष बर्फ पिघल ग्रीनलैंड व आइसलैंड में
12.7 हजार करोड़ मीट्रिक टन बर्फ प्रति वर्ष पिघल रही अंटार्कटिका में
ऐसे किया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में 215,000 ग्लेशियरों, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में ध्रुवीय बर्फ की चादर, साथ ही अंटार्कटिका और आर्कटिक और दक्षिणी महासागरों में समुद्र पर मौजूद बर्फ की चादर का अध्ययन किया है। वैज्ञानिकों ने बर्फ के इतनी तेजी से पिघलने के लिए बढ़ते तापमान और प्रदूषण को जिम्मेदार माना है।