इसका व्यास 14 किलोमीटर और गहराई तीन किलोमीटर है। इसरो ने कहा कि तस्वीरों में चंद्रमा पर बड़े पत्थर और छोटे गड्ढे दिख रहे हैं।
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वहीं, दूसरी और चांद से जुड़ी सबसे रोचक बात यह है कि चांद पर कुछ कदमों के निशान पाए गए हैं, जो लगभग 50 साल से जस के तस हैं।
सवाल यह है कि चांद की सतह पर आखिर इन कदमों के निशान मिटते क्यों नहीं हैं? आपको बता दें कि चांद पर पहली बार कदम रखने वाले अंतरिक्षयात्रियों में नील आर्मस्ट्रांग हैं का नाम आता है।
जबकि ऐसा करने वाले यूजीन सेरनन आखिरी व्यक्ति थे। इन अंतरिक्ष यात्रियों ने 1972 में चांद की सतह पर अपने कदमों के निशान छोड़े थे।
अब जबकि इस बात को अब 46 साल लंबा समय हो चुका है, बावजूद वो पदचिन्ह आज भी ज्यों कि त्यों हैं।
एक और वैज्ञानिक मार्क रॉबिन्सन कहते हैं कि चंद्रमा पर क्योंकि वायुमंडल नहीं है, इसलिए वहां मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों के कदमों के निशाना लाखों सालों तक बने रह सकते हैं।
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बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्क रॉबिन्सन का कहना है कि चांद मिट्टी की चट्टानों और धूल की एक मोटी परत से ढंका हुआ है।
यही वजह है कि चांद की परत में मिट्टी के कण पूरी तरह से मिश्रित हो चुके हैं। यही वजह है कि चांद की सतह पर से कदमों के निशाने लंबे समय के लिए बने रहते हैं।