Bihar: Congress-RJD के लिए गठबंधन संभाले रखना चुनौती, उपेन्द्र कुश्वाह, जीतनराम मांझी दिखा रहे आंख
मामले में सुनवाई कर रही जस्टिस रमेश धानुका और न्यायमूर्ति माधव जामदार की पीठ ने हॉस्पिटल को कोर्ट में 10 लाख रुपए जमा कराने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील विवेक शुक्ला ने अपनी दलील में बताया कि हॉस्पिटल की ओर से धमकी दी गई थी कि अगर याचिकाकर्ता ने बिल नहीं भरा तो उनको डिस्चार्ज नहीं किया जाएगा। हॉस्पिटल प्रबंधन का दबाव पड़ते देख याचिकाकर्ताओं ने कर्ज लेकर बिल के रूप में 10 लाख रुपए का भुगतान किया। यही नहीं हॉस्पिटल ने उनसे पीपीई किट के लिए अलग से वसूली की। इसके साथ उन सब सेवाओं का भी बिल बना दिया गया, जिनका इस्तेमाल ही नहीं किया गया था।
Virtual Parliament पर सहमति नहीं, छह दिन के लिए बुलाई जा सकती है बैठक
गौरतलब है कि कोर्ट 13 जून को राज्य धर्मादाय आयुक्त को आदेश दिया था कि वो इस बात की जांच करें कि हॉस्पिटल में गरीबों के लिए 20 प्रतिशत बेड आरक्षित किए गए हैं या नहीं। इसके साथ यह भी पता लगाया जाए कि क्या जरूरतमंद मरीजों को निशुल्क इलाज मुहैया कराया जा रहा है या नहीं? संयुक्त धर्मादाय आयुक्त ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि हालांकि हॉस्पिटलों में ऐसे बेट आरक्षित रखे गए हैं, लेकिन लॉकडाउन की तारीख से लेकर अब तक केवल तीन गरीब लोगों को ही इलाज किया गया। इस पर कोर्ट ने कहा कि ऐसे हालातों में हॉस्पिटल गरीब कोविड मरीजों से कोई प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की अपेक्षा न करे।