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क्या है न्यूमेटिक एयरब्रेक सिस्टम
दरअसल, उत्तर रेलवे के एक एक्सपर्ट के अनुसार न्यूमेटिक एयरब्रेक सिस्टम की यह विशेष है कि इसकी मदद से ट्रेन के डीरेलमेंट (यानी गाड़ी का पटरी से उतर जाना) की संभावना शून्य के बराबर रह जाती है। इससे पहले ट्रेनों में वैक्यूम ब्रेकों का इस्तेमाल किया जाता था, जिसेसे ब्रेक लगाने बाद गाड़ी 300 से 350 मीटर दूरी पर ठहर जाती थी। इसके साथ कई बार ब्रेक लगाने पर गाड़ी के पटरी से उतरने का खतरा बना रहता था। दशहरे की रात जोड़ा फाटक के पर जिस समय यह हादसा हुआ तब जालंधर-अमृतसर डीएमयू नम्बर 74643 की गति 100 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक थी। जबकि दूसरी गाड़ी 13006 अमृतसर-हावड़ा एक्सप्रेस अपनी पूरी गति पर चल रही थी।
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यहां चालक ने दिखाई समझदारी
एक्सपर्ट केतन गोराडिया के अनुसार दोनों गाड़ियों के ड्राइवर अगर थोड़ी सी भी सावधानी बरतते तो शायद हादसे में इतने लोग न मारे जाते। इसके लिए अगर ट्रेन का चालक 150-200 मीटर पहले न्यूमेटिक एयरब्रेक सिस्टम लगाता तो रावण दहन स्थल तक जाते—जाते गाड़ी रुक सकती थी। वहीं, चालक ने दूसरी बड़ी गलती कंट्रोल रूम और अगले स्टेशन को हादसे की सूचना न देकर की। हालांकि हादसे के समय चालक ने मौके पर गाड़ी न रोक कर समझदारी का परिचय दिया। अन्य गुस्साई भीड़ ट्रेन में तोड़फोड़ या फिर उसको आग के हवाले भी कर सकती थी।