लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि कोरोना ( Coronavirus in India ) केवल उन्हीं लोगों के लिए मुसीबत नहीं बना है, जो इस वायरस से संक्रमित है। इसने उन लोगों के लिए भी समस्या खड़ी कर दी हैं, जो पूरी तरह से स्वास्थ्य हैं। कुछ ऐसा ही मामला ईरान से लौटे दो ऐसे भारतीय छात्रों का है, स्वदेश तो पहुंच गए लेकिन यहां से घर जाने का रास्ता नहीं मिल रहा।
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दरअसल, सरकार की ओर से मार्च में ईरान से 457 भारतीय नागरिकों को स्वदेश लाया गया था। कोरोना संक्रमण के खतरे के चलते इनको राजस्थान के जैसलमेर में आर्मी की निगरानी में क्वारंटाइन किया गया था। इनमें अधिकांश लोग श्रीनगर और लद्दाख के थे, जबकि कुछ लोग देश के अन्य अलग—अलग राज्यों के थे। इन छात्रों में पश्चिम बंगाल के छात्र मिन्हाज आलम और बिहार के मोहम्मद भी शामिल हैं। अब जब क्वारंटाइन का समय खत्म हो गया है तो इन दोनों छात्रों को अपने खर्चे और संसाधन पर घर जाने को कह दिया गया है।
क्वारंटाइन से बाहर आकर घर लौटने की खुशी से तो इन दोनों के चेहरों पर चमक आ गई, लेकिन इन हालातों में और वो भी अपने खर्चे पर घर जाने की बात ने इनके होश उड़ा दिए। बड़ा सवाल यह था कि लॉकडाउन में जाएं कैसे। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दोनों छात्रों का आरोप है कि अन्य सभी लोगों के तो घर लौटने का इंतजाम कर दिया गया है, लेकिन उनको ऐसे ही छोड़ दिया गया हैै। इस बारे में उनके घर वालों को भी फोन कर दिया गया है।
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तेहरान की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे मिन्हाज ने बताया कि बंगाल यहां से 2000 किलोमीटर है। लॉकडाउन में यातायात बिल्कुल बंद है। एक टैक्सी वाले से बात की तो उसने 60 हजार रुपए की डिमांड की। इन हालातों में घर लौटना मुश्किल है। मिन्हाज ने सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा कि कश्मीर और लदृदाख के लोगों के घर लौटने का इंतजाम तो कर दिया गया, लेकिन मुझे खुद के खर्च पर जाने को कहा गया। उसने कहा कि मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं। तेहरान में भी मैं स्कॉलरशिप के सहारे पढ़ रहा हूं। मुजफ्फरपुर निवासी मोहम्मद के भी सामने ऐसी ही परेशानी है।