मीडिया और किताबों में आमतौर पर पुरुषों के गुस्से को न्यायसंगत लेकिन हिंसक बताया जाता है। २०१६ में मैसाच्युसेट्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने ‘चेहरे में क्या रखा है’ शीर्षक से एक अध्ध्यन किया। इसमें कहा गया कि ज्यादातर लोग पुरुषों के चेहरे के हाव-भाव को गुस्से से जोडक़र देखते हैं। गूगल पर भी गुस्सैल लोग शीर्षक से सर्च करने पर ८० फीसदी तस्वीरें पुरुषों की ही होती हैं। यानि पुरुष महिलाओं की तुलना में ज्यादा गुस्सैल होते हैं। लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाएं जल्दी नाराज होती हैं। शोध में भी ये कहा गया कि महिलाओं को गुस्सा ज्यादा आता है।
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2. गुस्सा निकालना आसान नहींकिसी पर चीखने-चिल्लाने या चीजों को तोडऩे से लोग समझते हैं कि गुस्सा शांत हो जाएगा। लेकिन नई रिसर्च में सामने आया कि इससे गुस्सा तो नहीं उतरता उल्टा अवसाद और बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि गुस्से को समय दीजिए और इसे खुद बखुद शांत होने दीजिए। यही सबसे आसान और प्रभावशाली तरीका है।
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3. एंगर मैनेजमेंट यानि गुस्से को पालनाजब गुस्सा आए तो लंबी सांसे लें, १० तक गिनती गिनें, पानी पिएं जैसी तरकीबें एंगर मैनेजमेंट में खूब सिखाई जाती हैं लेकिन असल में इनसे होता कुछ नहीं। दरअसल इन तरकीबों से हमारा गुस्सा बाहर नहीं निकलता और हम उसकी वजह से भीतर सुलगते रहते हैं। गुस्से का न निकलना भी रिश्तों को प्रभावित करता है। यह ईगो को बढ़ावा देता है और दूरियां पैदा करने का काम करता है।
अमरीकी साइकोलॉजिकल एसोसिएशन का कहना है कि गुस्सा एक सामान्य और स्वस्थ मानवीय भावना है। लेकिन यह तब नुकसानदायक हो जाती है जब कोई हमारे गुस्से को समझे नहीं या इसके पीछे के कारणों को स्वीकार न करे। शोधकर्ता मानते हैं कि क्रोध को स्थायी प्रभावों के साथ उत्पादक और रचनात्मक रूप से भी संचालित किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए खुद की भावनाओं पर नियंत्रण होना बेहद जरूरी है।