10 बजे से जकड़ जाता है शहर शहर सुबह दस बजे से जाम से जकड़ जाता है। प्रमुख चौराहों वेस्टर्न कचहरी रोड, बच्चा पार्क, मेघदूत चौराहा, रेलवे रोड, घंटाघर, बेगमपुल, हापुड़ स्टैंड पर भीषण जाम लग जाता है। वाहनों के इस जाम में प्रतिदिन एंबुलेंस भी घंटों जाम में फंसी रहती हैं, लेकिन दूर तक कोई पुलिसकर्मी नजर नहीं आता इनको रास्ता दिलाने के लिए। पुलिस अफसरों के तमाम दावे ध्वस्त हो गए।
दोपहर को थम जाता है महानगर दोपहर को महानगर थम जाता है। स्कूलों की छुट्टी होने के कारण और वेस्ट एंड रोड पर अधिकांश स्कूल होने के कारण ट्रैफिक पुलिस से यातायात संभालना बेकाबू हो जाता है। ट्रैफिक पुलिस बेकाबू जाम से निपटने के सभी प्रयास करती है लेकिन कोई ठोस रणनीति न होने के कारण वे भी जाम खुलवाने में असफल होते हैं। दोपहर 12 बजे के बाद महानगर के अन्य चौराहों पर भीषण जाम लग जाता है। वीआईपी मानी जाने वाली वेस्टर्न और ईस्टर्न कचहरी रोड जिस पर प्रशासनिक अधिकारी की गाड़ियां निकलती है जाम के कारण इस रोड पर कई एंबुलेंस गाड़ियां फंसी रहती हैं।
कोई सिस्टम काम नहीं करता टीएसआई दीन दयाल दीक्षित का कहना है कि शहर के चौराहों पर अलग-अलग तरीके से जाम से निजात पाने के लिए व्यवस्था बनाई गई है। बच्चा पार्क, जेलचुंगी चौराहा, कमिश्नरी चौराहे, तेजगढ़ी चौराहा समेत कई चौराहों पर लालबत्ती है, लेकिन लोग इसका पालन करने से बचते हैं। कई बार तो एंबुलेंस जाम में फंसी रहती है लेकिन उसके आगे खड़े वाहन चालक खुद अपने वाहनों को साइड नहीं करते। जिस कारण जाम की स्थिति और बद्तर हो जाती है। इसके अलावा ट्रैफिक कंट्रोल करने के लिए पूरा अमला है, लेकिन फिर भी ट्रैफिक जाम की स्थिति बनती है।
बोले एंबुलेंस संचालक मेरठ मेडिकल कालेज में दस वर्ष से मरीजों को अस्पताल पहुंचाने का कार्य कर रहे एंबुलेंस संचालक बिल्लू शर्मा ने बताया कि मेरठ में दिन में जाम के कारण मरीज को मेडिकल पहुंचाने में आधा घंटा से एक घंटा लग जाता है। जबकि मेडिकल कालेज मेरठ के दस किमी के दायरे में आता है। इस दस किमी की दूरी को पूरा करने में एंबुलेंस को 3 से 4 मिनट का समय लगता है। कई बार तो मरीज को समय पर इलाज नहीं मिल पाता जिससे उसकी मौत एंबुलेंस के भीतर ही हो जाती है। जाम के कारण उनकी एंबुलेंस में अब तक तीन मौत हो चुकी है।