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2019 में भाजपा से अगर ब्राहमण हो गए नाराज तो फिर हाशिए पर पहुंच जाएगी पार्टी

2014 के चुनाव के बाद लगातार ब्राहमण नेताओं को लगाया गया किनारे

मेरठAug 08, 2018 / 09:04 pm

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2019 में भाजपा से अगर ब्राहमण हो गए नाराज तो फिर हाशिए पर पहुंच जाएगी पार्टी

केपी त्रिपाठी @पत्रिका
मेरठ. प्रदेश में भाजपा को ब्राहमणों की अनदेखी भारी पड़ सकती हैं। 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से पार्टी के कद्दावर ब्राहमण नेताओं को नेतृत्व ने साइडलाइन कर दिया है या फिर हाशिये पर डाल दिया हैं। प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद से भाजपा से दरकिनार किए गए ब्राहमण नेताओं के कारण समाज में भी नराजगी बढ़ती जा रही है। मुरली मनोहर जोशी, लक्ष्मीकांत बाजपेई और कलराज मिश्र इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। भाजपा में जोशी का ऊंचा मुकाम माना जाता था। लेकिन आज उनकी हैसियत लोकसभा में चुपचाप बैठने के अलावा और कुछ भी नहीं है।

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लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा अपने प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी को हाशिये पर ढकेले हुए हैं। जबकि डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी पश्चिम उप्र के बडे़ कद्दावर नेताओं में माने जाते थे। आज वे अपने घर में कैद होकर रह गए हैं। इसी तरह से बड़े कद वाले कलराज मिश्र को भी केंद्र सरकार में एकदम महत्वहीन मंत्रालय सौंपा गया है।

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वर्ष 2007 के चुनाव में सत्ता में आई बसपा के 40 ब्राह्मण विधायक चुने गए थे। उनमें 16 को मुख्यमंत्री मायावती ने अहम विभाग दिये थे। 2012 के चुनाव के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में ब्राह्मण मतदाताओं की तादाद 20 फीसदी हैं। अखिल भारतीय ब्राहमण महासभा के अध्यक्ष शोभित मिश्रा का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नजर में ब्राह्मण सिर्फ एक वोट बैंक के अलावा और कुछ भी नहीं है। चुनाव नजदीक आते ही उसे ब्राह्मणों के हितों की चिंता सताने लगती है। भाजपा ब्राह्मणों का इस्तेमाल सिर्फ वोट के लिए करती है, जबकि सत्ता में आने पर भाजपा ब्राह्मणों को भूल जाती है।

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भाजपा ने कभी भी बसपा की तरह सीधे ब्राह्मण सम्मेलन नहीं किया। लेकिन जनवरी 2017 को कानपुर में चाणक्य सम्मेलन में मुरली मनोहर जोशी की मौजूदगी के जरिए पार्टी ने अपनी हसरतों के संकेत दिए थे। पार्टी का दूसरा ब्राह्मण चेहरा कलराज मिश्र हैं। इनके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी के बाद आज भाजपा में कोई भी बड़ा ब्राह्मण चेहरा नहीं है।

2014 के लोकसभा चुनाव में ब्राहमण की ताकत देख चुकी भाजपा
प्रदेश में ब्राह्मणों का सहयोग कितना महत्वपूर्ण है। यह भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में देखा, जिसमें उसकी 10 में से आधी सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आईं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामाया नगर, मथुरा और औरैया जिलों में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 12 फीसदी या इससे अधिक है। मथुरा में तो 17 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं। वैसे मजेदार बात यह है कि भाजपा अब भी अटल बिहारी वाजपेयी के नाम को ही प्रदेश में अपना सबसे बड़ा खेवनहार मान रही है। पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र पर अटल जी की तस्वीर छापी जाती है और होर्डिंग पर भी उनकी तस्वीर लगती रही है। शायद इसकी एक वजह यह है कि पार्टी ब्राह्मणों में अटल जी की अपील और उनकी छवि को भुनाती रही है। लेकिन अब यह गुजरी बातें हो चुकी हैं। भाजपा नेतृत्व को सोचना होगा कि वह इससे बाहर निकले।

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