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अगले लोक सभा चुनाव के लिए यहां हो रहा था असलाह तैयार, राइफल बनाकर सात हजार में बेचते थे 2012 से 2018 तक लगते रहे झटके रालोद अध्यक्ष अजित सिंह को वर्ष 2012 से ही राजनीतिक झटके लगते रहे। 2012 के शुरूआती में विधानसभा चुनाव में बड़ौत और बागपत सीट का हारना अजित सिंह के लिए सबसे बड़ा झटका साबित हुआ था। यहीं से उनके राजनीति दिनों के पतन की शुरूआत हुई।
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थाने में इनकी शादी कराकर पुलिस ने पेश की एेसी मिसाल, बरसों रखेंगे लोग याद 2013 में दंगे के बाद टूट गया रालोद का समीकरण इसके बाद वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर दंगा हुआ और पश्चिमी यूपी में रालोद का मुस्लिम समीकरण पूरी तरह से टूट गया। ऐसे में अपनी डूबती साख को बचाने के लिए अजित सिंह ने आम चुनाव 2014 से ठीक पहले ’जाट आरक्षण’ का मुद्दा उठाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वर्ष 2014 के आम चुनाव में अजित सिंह मोदी लहर में डूब गए। चुनावी नतीजे रालोद के खिलाफ रहे। तब से ही अजित सिंह यूपी में खासकर पश्चिम उप्र में संजीवनी तलाश रहे थे। जो उन्हें कैराना में हुए उपचुनाव के दौरान मिल ही गई। गठबंधन की यह जीत कितनी सफल होगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन भाजपा के विपक्ष में सभी राजनीतिक पार्टियां तैयारी में जुट गई हैं। रालोद के राष्टीय महासचिव डा. मैराजुद्दीन कहते हैं कि रालोद काफी समय से इस प्रयास में जुटा हुआ था कि सभी पार्टियां भाजपा के खिलाफ एकजुट हो तभी उससे लड़ाई जीती जा सकती है। पहले गोरखपुर और फूलपुर अब कैराना, नूरपुर इसके सबसे बढिया उदाहरण और परिणाम हैं।