महिलाओं पर अत्याचार करता है तालिबान शाहीन परवेज ने कहा कि तालिबान के अंतिम शासन में भी महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित किया गया था। शिक्षा और रोजगार से उन्हें वंचित किया गया। पर्दे का पालन करने के लिए मजबूर किया गया और महिलाओं के मुक्त आंदोलन को प्रतिबंधित किया गया। उन्होंने कहा कि तालिबान का न्यायशास्त्र पश्तूनों के पूर्व-इस्लामिक आदिवासी कोड और शरिया कानून की चुनिंदा व्याख्याओं से लिया गया था। शासन ने सामाजिक सेवाओं और अन्य बुनियादी राज्य कार्यों की उपेक्षा की है और महिलाओं को सिर से पैर तक बुर्का या चादरी का पालन करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। तालिबानी शासन काल में महिलाओं के संगीत सुनने और टेलीविजन देखने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। जबकि लड़कियों के लिए स्कूल बंद कर दिए गए।
पीएम मोदी से की अपील शाहीन परवेज ने कहा कि महिलाओं के हक की बात करने वाली विश्व बिरादरी को इस मामले में हस्ताक्षेप कर अफगान महिलाओं को उनका हक दिलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से अपील करते हैं कि अफगान में महिलाओं के साथ हो रही तालिबानी सरकार की बर्बरता के खिलाफ विश्व बिरादरी को एक करें और आवाज उठाएं। उन्होंने कहा कि तालिबान द्वारा सत्ता पर फिर से कब्जा करने से अफ़गानों को विशेषकर महिलाओं को क्रूर 1996-2001 के शासन को याद करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। पिछले 20 स्वर्णिम वर्षों के दौरान अफगानिस्तान की महिलाओं ने स्वतंत्रता और सशक्तिकरण का स्वाद चखा जो 2001 तक उनके लिए एक मायावी सपना था। महिलाओं ने पहली बार विमानन से लेकर कूटनीति और शिक्षा क्षेत्र से लेकर रक्षा तक के क्षेत्रों में पुरुषों के साथ प्रतिस्पर्धा की।
तालिबान के अतीत को भूलना नहीं चाहिए शाहीन परवेज ने यह भी कहा कि नए तालिबानी शासन ने दावा किया है कि उन्होंने महिला अधिकारों पर अपना रुख बदल दिया है। लेकिन किसी को भी अपने अतीत को नहीं भूलना चाहिए जिसमें भारी रक्तपात, हिंसा, मानवाधिकारों का उल्लंघन और उत्पीड़न देखा गया है। अतीत के पापों को धोने और महिलाओं को अपनी मातृभूमि में सहज महसूस कराने की जिम्मेदारी नई व्यवस्था पर है।