कोलकाता के मूर्तिकारीगर लाते हैं वैश्याओं के कोठे की मिट्टी मेरठ के कई इलाकों में मूर्तियों का निर्माण बड़े पैमाने पर होता है। पुराना सदर, घंटाघर, थापर नगर जैसे इलाकों में मूर्तिकारों की कलाकारी देखी जा सकती है। मेरठ में जब से कबाड़ी बाजार के कोठों पर ताला लगा है उसके बाद से कोलकाता के मूर्तिकार वहां की वैश्याओं के कोठे की मिट्टी लाते हैं और उससे देवी दुर्गा की मूर्ति का निर्माण करते हैं।
दो महीने पहले से आ जाते हैं कोलकाता से मूर्तिकार थापर नगर में मूर्तिकार प्रमोद प्रजापति बताते हैं कि उनके यहां पर कोलकाता से मूर्ति बनाने वाले कारीगर नवरात्र से दो महीने पहले आ जाते हैं। ये कारीगर ही अपने साथ वैश्याओं के कोठे के मिट्टी लेकर आते हैं। उसके बाद उस मिट्टी को गंगा के किनारे से लाई गई मिट्टी में मिलाया जाता है। इसके बाद देवी दुर्गा की मूर्ति को बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि वैश्याओं के कोठे से लाई गई मिट्टी से बनी मूर्ति का नवरात्र में और दुर्गा पूजा में एक खास महत्व होता है। लेकिन इस पावन पर्व की बात बिना इस महत्व के अधूरी रहती है। उन्होंने बताया कि मेरठ ही नहीं पूरे देश में लोकप्रिय इस पूजा के लिए वैश्याओं के कोठे से ली गई विशेष मिट्टी से माता की मूर्तियों का निर्माण होता है। उन्होंने बताया कि मिट्टी को ‘निषिद्धो पाली’ के नाम से भी पुकारते हैं।
ये है पौराणिक महत्व नवरात्रि नौ दिनों का त्यौहार होता हैं। नवरात्रि में दुर्गा पूजा की जाती है और यही उनका सबसे बड़ा पर्व होता है। दुर्गा पूजा के दौरान देवी मां की मूर्ति बनाई जाती है। जिसके लिए मिट्टी वैश्याओं के कोठे से भी लाई जाती है। इस बारे में पंडित सुनील शास्त्री बताते हैं कि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार दुर्गा पूजा के लिए मां की जो मूर्ति बनती है उसके लिए 4 चीज़ें बहुत ज़रूरी होती हैं। पहली गंगा तट की मिट्टी, गौमूत्र, गोबर और वैश्यालय की मिट्टी या किसी ऐसे स्थान की मिट्टी जहां जाना निषेध हो। इन सभी को मिलाकर बनाई गई मूर्ति ही पूर्ण मानी जाती है। ये रिवाज कई सदियों से चला आ रहा है।
वैश्यालय की मिट्टी से बनी मूर्तियों की पूजा से प्रसन्न होती हैं देवी ऐसी मान्यता है कि वैश्यालय की मिटटी से बनी देवी दुर्गा की इन मूर्तियों की पूजा से देवी प्रसन्न होती हैं और नवरात्र में की गई पूजा और व्रत का फल मिलता है।