बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया। शोषण का शिकार निसहाय बच्चों और महिलाओं की मुक्ति और फिर प्रगति के लिए जो कार्य किये और कार्यक्रम बनाए, वे आज समाज के लिए आदर्श बन गए हैं। जीवन में आई हर चुनौती को स्वीकार करने वाली साधना श्रीवास्तव ने कभी भी विपरीत परिस्थितियों में खुद को निराश होने नहीं दिया। उलटे, मुश्किल हालातों में समस्याओं का हल निकालने की कोशिश करते हुए और भी ताकतवर हुई।
साधना बताती है कि पढने की उम्र में ही इतना कमाने लगीं कि अपनी सारी ज़रूरतों के लिए उन्हें अपने मां और भाइयों पर उनको निर्भर नहीं होना पड़ा। स्वयं के जुटाए रूपये की मदद से साधना ने उच्च शिक्षा भी हासिल की। साधना बताती है कि उन्होंने बचपन में ही बहुत कुछ सीख लिया था। गरीबी को उन्होंने बहुत करीब से देखा। ये भी जान लिया कि गरीब परिवारों में महिलाएं और बच्चे किन-किन समस्याओं से दो-चार होते हैं। साधना बहुत ही छोटी उम्र में ही ये जान गयी थी कि बच्चे किन हालत में मजदूर बनते हैं और मजदूर बनने के बाद किस तरह से उनका बचपन उनसे छिन जाता है। अपने ही दम पर उन्होंने मानसी के नाम से स्वयंसेवी संस्था का गठन किया। साधना बिना सरकारी सहायता के अब तक करीब 500 गरीब कन्याओं की शादी करवा चुकी हैं। इसके अलावा कांउसलिंग के माध्यम से वे कई घरों को उजडऩे से भी बचा चुकी हैं। 100 से अधिक गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्चा खुद उठा रही हैं।