पिछले एक साल में जेल की चाहरदीवारी के भीतर बीमार हुए बंदियों में से 18 की मौत हो चुकी हैं। इन मृतकों में अधिकांश वो बंदी हैं जिनकी मौत इलाज के दौरान हुई। यानी यह माना जा सकता है कि जेल की स्वास्थ्य सेवाओं में कहीं न कहीं चूक रही कि बीमार बंदियों की मौत होती रही और जेल अधिकारी चुप रहे। इससे स्वास्थ्य सेवाओं और समय पर उपचार को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
जेल प्रशासन का दावा है कि स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर है, लेकिन थोड़े-थोड़े समय अंतराल पर यहां बंदियों की मौत हो रही है। बीते बुधवार को भी यहां हत्या के आरोप में बंद एक बंदी ने दम तोड़ा। पिछले मामलों की तरह ही इस बंदी को भी हायर सेंटर में भर्ती कराया गया। लेकिन वहां पर उसने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। जेल प्रशासन ने शुरुआत में बुखार होने के बाद हालत बिगड़ने की बात कही, लेकिन मौत के बाद कारण कुछ और ही बताया गया। बंदी शुरुआती दौर में बुखार से पीड़ित हुए और इसके बाद उनकी हालत बिगड़ी चली गई।
छात्र नेता द्वारा मांगी गई आरटीआई में खुलासा कोरोना काल में हुई इन मौतों को जेल प्रशासन ही नहीं शासन भी नजर अंदाज करता रहा है। छात्र नेता विनीत चपराना ने इस संबंध में आरटीआई डाली थी। जिसके जवाब में जेल प्रशासन द्वारा जानकारी दी गई कि एक जनवरी, 2020 से 26 अगस्त, 2021 के बीच जेल के 17 बंदियों की मौत हो चुकी है।
जेल चिकित्सालय में स्टाफ और बेड दोनों फिर भी लापरवाही जिला कारागार के भीतर चिकित्सालय में 30 बेड बंदियों के लिए हैं। यहां पर दो डॉक्टरों की तैनाती बंदियों की सेहत की देखभाल और इलाज के लिए होती है। इसके अलावा अस्पताल में दो फॉर्मासिस्ट, एक लैब सहायक भी नियुक्त है। गंभीर रोग की स्थिति में बंदियों को मेडिकल में भर्ती कराया जाता है और वहां पर उपचार दिलाया जाता है।