मथुरा

Once Upon A Time: इस मंदिर में करीब 40 सालों से आराध्य को लगाया जा रहा है चाय और सिगरेट का भोग, जानिए इसका इतिहास!

मंदिर के आराध्य पागल बाबा चाय और सिगरेट के बेहद शौकीन थे।
 

मथुराNov 07, 2019 / 02:22 pm

suchita mishra

देश-प्रदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर भाईचारे की मिसाल बना हुआ है

मथुरा। आमतौर पर आपने मंदिरों में खाने के तमाम तरह के भोग लगते हुए देखा होगा, लेकिन मथुरा के वृंदावन में एक ऐसा मंदिर है, जहां आराध्य को सिगरेट और चाय का भोग लगाया जाता है। पत्रिका के विशेष कार्यक्रम Once Upon a Time में जानते हैं इस भोग की शुरुआत होने की प्रथा के बारे में।
मथुरा से करीब 15 किलोमीटर दूर मथुरा वृंदावन मार्ग पर स्थित है श्रीमद् लीलानंद ठाकुर पागल बाबा का मंदिर। इस मंदिर को पागल बाबा का मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर अपने आप में वृंदावन का अलौकिक मंदिर है और इस मंदिर की छवि यहां आने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती है। पागल बाबा मंदिर के पुजारी अजय से जब पत्रिका की टीम ने बात की तो उन्होंने यहां की तमाम दिलचस्प बातों के बारे में बताया।
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एक ऐसा मंदिर, जिसमें मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा भी है

मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर की नींव 1965 में रखी गई थी। पागल बाबा ने इस मंदिर की नींव को खुद ही रखा था। 24 जुलाई 1980 को पागल बाबा ने जिंदा समाधि ले ली थी। इसके बाद 1981 में मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई। पागल बाबा मंदिर की लंबाई 150 फीट है, चौड़ाई 120 फ़ीट और ऊंचाई 221 फीट है।
पुजारी ने बताया कि यहां श्रीमद् लीलानंद ठाकुर यानी पागल बाबा को नित सुबह, दोपहर और शाम भोग लगाया है। भोग में दाल, चावल, रोटी, मिष्ठान तो होते ही हैं, साथ ही चाय और सिगरेट का भोग भी लगाया जाता है। इसका कारण है कि बाबा चाय और सिगरेट के बेहद शौकीन थे। वे दिन में कई बार चाय और सिगरेट लिया करते थे। जिस दिन से मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई है, तब से आज तक यहां बाबा को चाय और सिगरेट का भोग जरूर लगता है। बाद में इस चाय के प्रसाद को भक्तों के बीच बांट दिया जाता है।
बाबा ने नहीं चलाई शिष्य परंपरा
पागल बाबा ने कोई भी शिष्य परंपरा नहीं चलाई। उन्होंने इस भव्य मंदिर के संचालन के लिए 1976 में एक रजिस्टर्ड पत्र अंकित किया था, उसे आज भी बाबा का ट्रस्ट मानता है। इसमें मथुरा के जिलाधिकारी को अध्यक्ष और जनपद के मुख्य न्यायाधीश को उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है और ये दोनों पदाधिकारी ही अपने स्वयं के विवेक से ब्रजभूमि के श्रेष्ठ भक्तजनों में से तीन व्यक्तियों को मनोनीत करेंगे। इस प्रकार 5 व्यक्तियों का एक ट्रस्ट बना। पागल बाबा के मंदिर की यही लोग सारी व्यवस्थाओं को आज भी देखते हैं।

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