• व्रत की पूर्व रात्रि को प्रेम से रहना चाहिए, कम भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। • अगले दिन सुबह होने से पहले सो कर उठ जाएं, स्नान कर लें, पृथ्वी को नमन करें, सूर्य को नमन करें, अपने इष्ट देवता को नमन करें।
• पूरब या फिर उत्तर दिशा में मुहं करके बैठ जाएं। साथ में कुछ फल, जल और कुश का आसन लेकर बैठ जाएं। • व्रत का संकल्प लें, इसके लिए आप अपना नाम लें, अपना गोत्र का नाम लें और कहें कि हे भगवान आज मैं आपका व्रत रख रहा हूं। आप मेरे ऊपर कृपा करें।
• दोपहर के समय काले तिल और जल ले और फिर ऐसा कार्य करना चाहिए जैसे देवकी जी की सुतू ग्रह का निर्माण हम स्वयं कर रहे हैं। फिर काले तिल को जल से स्नान कराकर ऐसी स्थिति बनाना चाहिए, ऐसा भाव रखना चाहिए।
• उसके बाद भगवान श्री कृष्ण की एक मूर्ति या फिर चित्र रखें। चित्र में या तो भगवान मां यशोदा से माखन की मांग कर रहे हों या फिर नारायण जी की चरण मां लक्ष्मी दबा रही हैं, ऐसी तस्वीर अपने घर में विराजमान कराएं।
• भगवान श्री कृष्ण की बाल अवस्था की तस्वीर होनी चाहिए। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करना चाहिए। • कोशिश करें कि जब भी आपको मौका मिले आप इस मंत्र का जाप करें, ‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
• इसके बाद रात्रि में जब भगवान कृष्ण का जन्म हो जाए तभी अधिकांश पूजन आपको करना है। पंचामृत से अभिषेक करना हैं। घी का दीपक जलाएं, पंजीरी का भोग बनाएं। इसके अलावा जो भी प्रसाद आप भगवान के लिए बनाना चाहते हैं आप बना लें।
• जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म हो जाए तब तुलसी डालें, पहले ना डालें। क्योंकि तुलसी पहले डालने से प्रसाद जूठा हो जाता है। • सबसे पहले पंचामृत से अभिषेक कराएं, फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं, फिर भगवान श्री कृष्ण को वस्त्र धारण कराएं, फिर ठाकुर जी की आरती करें।