मान्यता है कि द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण ने जब गोपियों के साथ महारास किया था तो इस मनोहरी दृश्य को देखने के लिए 33 कोटि देवता पृथ्वीलोक पर आए थे, लेकिन उन्हें महारास में शामिल नहीं होने दिया गया। इसका कारण था कि महारास में केवल महिलाएं ही शामिल हो सकती थीं। लिहाजा सभी देवताओं को वहां से वापस लौटना पड़ा। लेकिन भगवान शंकर नहीं लौटे। जिसके बाद पार्वती ने उन्हें यमुना महारानी के पास भेज दिया। यमुना ने भोले भंडारी को गोपी का रूप धारण कराया। इसके बाद महादेव ने गोपी रूप में वहां महारास किया। गोपी रूप में सजे महादेव को भगवान श्रीकृष्ण ने पहचान लिया। महारास के बाद भगवान कृष्ण ने स्वयं शंकर भगवान की पूजा की और राधा जी ने वरदान दिया कि आज के बाद उनका गोपेश्वर रूप यहां गोपी के रूप में पूजा जाएगा। तब से लेकर आज तक यहां लोग शिव को गोपी के रूप में पूजते हैं। महाशिवरात्रि के दिन यहां गोपेश्वर महादेव का सोलह श्रृंगार किया जाता है।