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मथुरा

वृन्दावन में विराजे ‘लन्दन रिर्टन’ गणेश जी , जानिए इस मंदिर का रोचक इतिहास

श्री यमुना नदी के किनारे स्थित राधाबाग़ अति प्राचीन सिद्धपीठ के रूप में श्री श्री माँ कात्यायनी देवी विराजमान हैं। पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि श्रीधाम वृन्दावन में भगवती देवी के केश गिरे थे, इसका प्रमाण प्रायः सभी शास्त्रों में मिलता ही है।

मथुराSep 03, 2019 / 04:14 pm

अमित शर्मा

वृन्दावन में विराजे ‘लन्दन रिर्टन’ गणेश जी , जानिए इस मंदिर का रोचक इतिहास

वृन्दावन में विराजे ‘लन्दन रिर्टन’ गणेश जी , जानिए इस मंदिर का रोचक इतिहास

मथुरा। आपने कभी सोचा नहीं होगा कि गणेश जी की प्रतिमा भी लन्दन घूम कर आ सकती है। मगर यह एक सच्ची घटना है जिसमें गणेश जी लन्दन तक घूम कर आ गये और वर्षों से वृन्दावन में विराजमान हैं और आज भी लोग माँ भगवती दुर्गा के साथ-साथ इन्हीं गणेश जी कि प्रतिमा के दर्शन करते हैं।
वृन्दावन में विराजे ‘लन्दन रिर्टन’ गणेश जी , जानिए इस मंदिर का रोचक इतिहास
कात्यायनी पीठ के नाम से जाना जाने वाला स्थान मथुरा जनपद के वृन्दावन में स्थित है। भगवती कात्यायनी के अनन्य साधक व योगिराज श्री श्यामाचरण लाहिड़ी जी महाराज के परम शिष्य योगी स्वामी केशवानन्द ब्रह्मचारी जी महाराज ने अपनी कठोर साधना द्वारा प्राप्त भगवती के प्रत्यक्ष आदेशानुसार इस लुप्त स्थान श्री कात्यायनी पीठ राधा बाग, वृन्दावन नामक पावनतम पवित्र स्थान का उद्धार किया।
वृन्दावन में विराजे ‘लन्दन रिर्टन’ गणेश जी , जानिए इस मंदिर का रोचक इतिहास
वृन्दावन में कात्यायनी पीठ
श्री यमुना नदी के किनारे स्थित राधाबाग़ अति प्राचीन सिद्धपीठ के रूप में श्री श्री माँ कात्यायनी देवी विराजमान हैं। पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि श्रीधाम वृन्दावन में भगवती देवी के केश गिरे थे, इसका प्रमाण प्रायः सभी शास्त्रों में मिलता ही है। आर्यशास्त्र, ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं आद्या स्तोत्र आदि कई स्थानों पर उल्लेख है- व्रजे कात्यायनी परा अर्थात् वृन्दावन स्थित पीठ में ब्रह्मशक्ति महामाया श्री माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है। वृन्दावन स्थित श्री कात्यायनी पीठ भारतवर्ष के उन अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक अत्यन्त प्राचीन सिद्धपीठ है। देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के बाईसवें अध्याय में इसका उल्लेख किया है-
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः॥
हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! नन्द गोप के पुत्र को हमारा पति बनाओ हम आपका अर्चन एवं वन्दन करते हैं। दुर्गा सप्तशती में देवी के अवतरित होने का
उल्लेख इस प्रकार मिलता है-
श्रीमद् भावगत में भगवती कात्यायनी के पूजन द्वारा भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने के साधन का सुन्दर वर्णन प्राप्त होता है। यह व्रत पूरे मार्गशीर्ष (अगहन) के मास में होता है। भगवान श्री कृष्ण को पाने की लालसा में ब्रजांगनाओं ने अपने हृदय की लालसा पूर्ण करने हेतु यमुना नदी के किनारे से घिरे हुए राधाबाग़ नामक स्थान पर श्री कात्यायनी देवी का पूजन किया था। इस महान् सिद्धपीठ का उद्धार निश्चित रूप से भगवती की कृपा प्राप्त व्यक्ति संत महात्मा श्री केशवानन्द जी ने श्री कात्यायनी पीठ का पुनर्रुद्धार करके लोक कल्याण का काम किया है जिसके कारण आज वर्ष भर लाखों श्रृद्धालु सम्पूर्ण भारत वर्ष से यहां आते हैं।
कात्यायनी पीठ, वृन्दावन
कामरूप मठ के स्वामी रामानन्द तीर्थ जी महाराज से दीक्षित होकर कठोर साधना के लिए हिमालय की कंदराओं में निरन्तर साधनारत रहे स्वामी केशवानन्द जी महाराज ने सर्वशक्तिशाली माँ के आदेशानुसार वृन्दावन स्थित अज्ञात सिद्धपीठ का उन्होंने पुनरूध्दार कराया। स्वामी केशवानन्द जी महाराज द्वारा 1 फ़रवरी, 1923 माघी पूर्णिमा के दिन बनारस, बंगाल तथा भारत के विभिन्न सुविख्यात प्रतिष्ठित वैदिक याज्ञिक ब्राह्मणों द्वारा वैष्ण्वीय परम्परा से मंदिर की प्रतिष्ठा का कार्य पूर्ण कराया। माँ कात्यायनी के साथ-साथ पंचानन शिव, विष्णु, सूर्य तथा सिद्धिदाता श्री गणेश जी महाराज (जिनकी बात तो कुछ अलौकिक ही है “जिसने जाना उसने पाया“ वाली कहावत चरितार्थ है) की मूर्तियों की भी इस मंदिर में प्रतिष्ठा की गई। राधाबाग़ मंदिर के अंतर्गत गुरु मंदिर, शंकराचार्य मंदिर, शिव मंदिर तथा सरस्वती मंदिर भी दर्शनीय हैं। यहाँ की अलौकिकता का मुख्य कारण जहां साक्षात माँ कात्यायनी सर्वशक्तिस्वरूपणि, दुःखकष्टहारिणी, आल्हादमयी, करुणामयी अपनी अलौकिकता को लिए विराजमान है वहीं पर सिद्धिदाता श्री गणेश जी एवं बगीचा में अर्ध्दनारीश्वर (गौरीशंकर महादेव) एक प्राण दो देह को धारण किये हुए विराजमान हैं। लोग उन्हें देखते ही मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं।

श्री सिद्ध गणेश कात्यायनी पीठ, वृन्दावन
श्री श्री कात्यायनी पीठ वृन्दावन में स्थित गणपति महाराज की मूर्ति का भी विचित्र इतिहास है। एक अंग्रेज़ श्री डब्लू. आर. यूल कलकत्ता में मैसर्स एटलस इंशोरेंस कम्पनी लि. जो न. 4 क्लाइव रोड पर है, में ईस्टर्न सेक्रेटरी पद पर कार्य करते थे। इनकी पत्नी श्रीमती यूल ने कोई सन् 1911 या 1912 में जबकि वह विलायत जा रही थीं, जयपुर से एक गणपति महाराज की मूर्ति ख़रीदी। वह अपने पति को कलकत्ता छोड़कर इंग्लैण्ड चली गईं तथा उन्होंने अपनी बैठक में कारनेस पर गणपति जी की प्रतिमा सज़ा दी। एक दिन श्रीमती यूल के घर भोज हुआ तथा उनके मित्रगणों ने गणेश जी की प्रतिमा को देखकर उनसे पूछा कि यह क्या है? श्रीमती यूल ने उत्तर दिया कि यह हिन्दुओं का सूंड वाला देवता है। उनके मित्रों ने गणेश जी की मूर्ति को बीच की मेज पर रखकर उपहास करना आरम्भ किया। किसी ने गणेश जी के मुख के पास चम्मच लगाकर पूछा कि इनका मुंह कहां है। जब भोज समाप्त हो गया तब रात्रि में श्रीमती यूल की पुत्री को ज्वर हो गया जो रात्रि को बड़े वेग से बढ़ गया। वह अपने तेज़ ज्वर में चिल्लाने लगी हाय मेरा सूंड़वाला खिलौना मुझे निगलने आ रहा है। डाक्टरों ने सोचा कि वह विस्मृति में बोल रही है। किन्तु वह रात दिन यही शब्द दोहराती रही एवं अत्यन्त भयभीत हो गयी। श्रीमती यूल ने यह सब वृतांत अपने पति को कलकत्ता लिखकर भेजा। उनकी पुत्री को किसी भी औषधि से लाभ नहीं हुआ। एक दिन यूल ने स्वप्न में देखा कि वह अपने बाग़ के अतिथिगृह में बैठी है। सूर्यास्त हो रहा है, अचानक एक नम्र पुरुष जिसके घुंघराले बाल, मशाल सी जलती आंख, हाथ में भाला लिए, वृषभ पर सवार बढ़ते हुए अंधकार से उसकी ओर आ रहा है एवं कह रहा है, ’ मेरे पुत्र सूंड़ वाले देवता को तत्काल भारत भेज दो अन्यथा मैं तुम्हारे सारे परिवार का नाश कर दूंगा। वह अत्यधिक भयभीत होकर जाग उठी और दूसरे दिन प्रातः ही उन्होंने उस खिलौने को पार्सल बनवाकर पहली डाक से ही अपने पति के पास भारत भेज दिया। जहां वह देवता गार्डन हेंडरसन के कार्यालय में तीन दिन तक रहे। वहां शीघ्र ही कलकत्ता के नर नारियों की सिद्ध गणेश के दर्शनार्थ कार्यालय में भीड़ लग गयी। कार्यालय का सारा कार्य रुक गया। श्री यूल ने अपने अधीन इंश्योरेंस एजेण्ट केदार बाबू से पूछा कि इस देवता का क्या करना चाहिए। अन्त में केदार बाबू गणेश जी को अपने घर 7, अभय चरण मित्र स्ट्रीट ले गए एवं वहां उनकी पूजा शुरू कर दी। तब से सब भक्तों ने केदार बाबू के घर पर जाना आरम्भ कर दिया।
इधर वृन्दावन में स्वामी केशवानन्द जी महाराज कात्यायनी देवी की पंचायतन पूजन विधि से प्रतिष्ठा के लिए सनातन धर्म की पांच प्रमुख मूर्तियों का प्रबन्ध कर रहे थे। श्री श्री कात्यायनी देवी की अष्टधातु से निर्मित मूर्ति कलकत्ता में तैयार हो रही थी तथा भैरव चन्द्रशेखर की मूर्ति जयपुर में बनाई गई थी । जबकि महाराज गणेश जी की प्रतिमा के विषय में विचार कर रहे थे, तभी उन्हें माँ का आदेश हुआ कि एक सिद्ध गणेश कलकत्ता में केदार बाबू के घर में हैं। जब तुम कलकता से प्रतिमा लाओगे तब मेरे साथ मेरे पुत्र को भी लाना। अतः जब श्री केशवानन्द जी श्री श्री कात्यायनी माँ की अष्टधातु की मूर्ति पसंद करके लाने के लिए कलकत्ता गये तब केदार बाबू ने उनके पास आकर कहा गुरुदेव मैं आपके पास वृन्दावन आने का विचार कर रहा था।
मैं बड़ी विपत्ति में हूं। मेरे पास पिछले कुछ दिनों से एक गणेश जी की प्रतिमा है। प्रतिदिन रात्रि में स्वप्न में वह मुझसे कहते हैं कि जब श्री श्री कात्यायनी माँ की मूर्ति वृन्दावन जायेगी तो मुझे भी वहां भेज देना। कृपया आप स्वीकार करें। गुरुदेव ने कहा,“ बहुत अच्छा तुम वह मूर्ति स्टेशन पर ले आना, मैं तूफ़ान से जाऊँगा। जब माँ जायेगी तो उनका पुत्र भी उनके साथ जाएगा।“
अतः जब श्री श्री स्वामी केशवानंद जी महाराज श्री श्री कात्यायनी देवी की अष्टधातु की अत्यन्त ही सुन्दर प्रतिमा लेकर कलकत्ता से वापस आ रहे थे, केदारबाबू ने स्टेशन आकर गुरुदेव को गणेश जी की प्रतिमा दे दी। वह सिद्ध गणेश इन महायोगी द्वारा श्री श्री कात्यायनी पीठ में प्रतिष्ठित किए गए हैं। इनकी स्थापना के कुछ समय बाद से ही इस अद्भुत देवता की कई आश्चर्यजनक घटीं जो कि लिपिबद्ध की जाएं तो एक पूरा ग्रन्थ ही बन जाए।
स्वामी विद्याननद जी महाराज
स्वामी श्री केशवाननद जी महाराज के परम भक्त श्री विशम्भर दयाल जी और उनकी पत्नी श्री रामप्यारी देवी जी जो प्रतिदिन महाराज जी के दर्शन करने आया करते थे, ’मां’ की भक्ति के साथ-साथ गुरु महाराज स्वामी श्री केशवानंद जी के भी कृपा पात्र हो गये। श्री विशम्भर दयाल जी के छ्ह पुत्र थे, इन छ्ह पुत्रों पर महाराज का आशीर्वाद सदा विद्यमान रहा। परन्तु चतुर्थ पुत्र पर उनकी कृपा दृष्टि अत्यधिक रही और विधुभूषण नामक यह बालक आज स्वामी विद्यानंद जी महाराज के नाम से जाने जाते हैं।
प्रस्तुति- सुनील शर्मा

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