मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में एक भाई ने अपनी भानेज का भात बैलगाडिय़ों से जाकर भरा, एक साथ 15 बैलगाडिय़ां जब गांव से निकली तो लोग दंग रह गए, क्योंकि जिस जमाने में लोग लग्जरी गाडिय़ों से शादी ब्याह की विभिन्न रस्में निभाने जाते हैं, उस जमाने में एक भाई ने बैलगाड़ी से अपनी बहन के यहां जाकर भात भरा, इस भात ने बुदेंलखंड के राजा हरदौल की याद दिला दी, क्योंकि उन्होंने अपनी मौत के बाद भी अपनी बहन के यहां जाकर भात भरा था। आईये जानते हैं राजा हरदौल की पूरी कहानी और मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में भरे गए भात की की कहानी।
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में टीकमगढ़ जिले में ओरछा नामक कस्बा है, जो महाराज वीरसिंह की रियासत था, महाराजा वीरसिंह के 8 बेटे थे, जिसमें सबसे छोटे बेटे का नाम हरदौल था, जो वीरता और ब्रह्मचर्य के पक्के थे, यही कारण था, राजा हरदौल को ओरछा से राज्य संचालन का जिम्मा मिला था, बताया जाता है कि वर्ष 1688 में एक खंगार सेनापति पहाड़ सिंह, प्रतीत राय व एक महिला हीरादेवी के भडक़ाने में आकर राजा जुझार सिंह ने अपनी पत्नी चंपावती से छोटे भाई हरदौल को विष पिलाकर पतिव्रता होने की परीक्षा ली, विष पीने के कारण राजा हरदौल की महज २३ साल में मौत हो गई थी। राजा हरदौल की मौत होने के बाद जब उनकी बहन की बेटी की शादी होने वाली थी तब उनकी बहन राजा जुझार सिंह से भात मांगने गई, तो जुझार सिंह ने कहा कि वह तो हरदौल से ज्याद स्नेह रखती थी, तो उसी से जाकर भात मांगे, तब राजा हरदौल की बहन कुंजावती रोती बिलखती हुई राजा हरदौल की समाधि पर पहुंची और अपने भाई से भात मांगा, इस पर भाई ने भात लेकर आने की बात कही, फिर राजा हरदौल की रूह भात लेकर पहुंची, बैलगाडिय़ों से भात पहुंचा, लेकिन राजा हरदौल नजर नहीं आए तो भानेज द्वारा मामा को सामने आने की जिद की गई, तब राजा हरदौल स्वयं प्रकट हुए, बस तभी से राजा हरदौल को देवता के रूप में पूजा जाने लगा और समाधि स्थल पर उनका भव्य मंदिर बन गया, आज भी लोग राजा हरदौल को भात चढ़ाने जाते हैं। कहा जाता है कि बुंदेलखंड क्षेत्र में शादी, ब्याह, या कोई धार्मिक अनुष्ठान होने पर सबसे पहले राजा हरदौल को आमंत्रण देते हैं, माना जाता है कि राजा हरदौल को आमंत्रित करने से भंडारे में कभी कोई कमी नहीं आती है।
मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित गांव मोरखेडा में बहन के यहां मायरा भरने भाई बैलगाड़ी से पहुंचे तो यह हर किसी को आश्चर्य लगा। 15 बैलगाडिय़ों में करीब 600-700 लोगों का काफिला लेकर परिवार 65 किमी का सफर दो दिन में तय कर पहुंचा। रास्ते में लोगों में इनके साथ सेल्फी लेने की होड़ लग गई।
ग्राम पंचायत बागिया के सरपंच लक्ष्मीनारायण मीणा नीमच में अपने भांजे की शादी में अनोखे ढंग से मायरे लेकर पहुंचे। मोरखेड़ा गांव से 15 बैलगाडिय़ों के साथ 600-700 ग्रामीणों के साथ करीब 65 किमी का सफर तय कर नीमच पहुंचे और वहां मायरा भरा। भाई ओर अपने गांव के लोगों को बैलगाड़ी से इस तरह ढोल-ढमाको के साथ आता देख बहन की खुशियों का भी ठिकाना नहीं था।
रस्मों को निभाया
सरपंच लक्ष्मीनारायण ने बताया कि उनकी बहन ममता के बेटेेे दीपक मीणा की 4 मई को नीमच हवाईपट्टी क्षेत्र में शादी हुई। मायरा लेकर वह दो दिन में वहां पहुंचे। 3 मई को सुबह 7 बजे 15 बैलगाडिय़ों व करीब 600-700 ग्रामीणों के साथ मायरा लेकर निकलें थे। 4 मई को शाम 7 बजे नीमच पहुंचे। जहां उन्होंने रस्मों को निभाते हुए बहन के मायरा किया।
अब आना-जाना ही खर्चीला
जहां एक तरफ बदलते जमाने के साथ शादियां दिखावे के साथ खर्चीली होती जा रही हैं, वहीं आवागमन भी खर्चीला हो गया है। ऐसे में तीन भाइयों ने बैलगाड़ी से मायरा भरने जाने की ठानी। बैलगाड़ियों में सजे-धजे बैलों की जोड़ी के गले में घुंघरू बांधे गए। परिजन झूमते-नाचते गए। इस दौरान बड़े-बुर्जुगों ने युवाओं को पुराने रीति-रिवाज के बारे में बताया।
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पुराने दौर में बैलगाड़ी से आना-जाना सामान्य सी बात थी लेकिन आधुनिकता के इस दौर में लोग ऐसी सवारी देखने को इतने उत्साहित रहे कि इस मौके को मोबाइल में कैद कर लिया। वृद्धों को आधुनिक दौर में भी अनूठा नजारा देखने को मिला तो उनकी पुरानी यादें ताजा हो गई।