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मैनपुरी

डिंपल यादव बर्थडे: दोस्त और पॉलिटिक्स के बीच उलझ गई थी डिंपल की शादी, फिर क्या हुआ?

Dimple Yadav Birthday: डिंपल यादव का आज 45वां जन्मदिन हैं। उनका जन्म 15 जनवरी 1978 को ठाणे में हुआ था। फिर वहां मैनपुरी की सांसद बनने तक की कहानी, आज हम आपको बता रहे हैं…

मैनपुरीJan 15, 2023 / 04:44 pm

Vikash Singh

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सुनीता एरन ने अखिलेश यादव पर ‘अखिलेश-बदलाव की लहर’ नाम की किताब लिखी है। इस किताब में उन्होंने डिंपल और अखिलेश के निजी जिंदगी से जुड़ी कई बातों का जिक्र किया है। इस किताब के मुताबिक अखिलेश और डिंपल दोस्त से मिलने का बहाना बनाकर एक दूसरे से छुप-छुपकर मिलते थे।

डिंपल स्वभाव से शांत, पढ़ाई में तेज और घुड़सवारी की शौकीन हैं। अखिलेश और डिंपल दोनों के स्वभाव और शौक बिल्कुल अलग हैं। अखिलेश जहां के फुटबॉल प्रेमी हैं वहीं डिंपल अमेरिकन रॉक बैंड मैटालिका की दीवानी हैं। आइए डिंपल के बर्थडे पर उनकी पूरी कहानी सुनाते हैं।
 
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कहानी तब की जब डिंपल यादव नहीं डिंपल रावत हुआ करती थीं

डिंपल यादव का जन्म महाराष्ट्र के ठाणे में 15 जनवरी 1978 को हुआ था। उनके माता-पिता उत्तराखंड के अल्मोड़ा के रहने वाले हैं। लेकिन पिता फौज में थे तो ट्रांसफर होते रहते थे।

पिता के ट्रांसफर के चलते डिंपल की पढ़ाई पुणे, भटिंडा, अंडमान निकोबार और लखनऊ में हुई। डिंपल के पिता एसपी रावत सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे।

डिंपल तीन बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। उनके पिता अभी उत्तराखंड के काशीपुर में रहते हैं। डिंपल ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीकॉम किया है। यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान ही इनकी मुलाकात अखिलेश से हुई थी।
मुलाकात हुई, बात हुई फिर छुप-छुपकर मिलना और विदेश तक जाने लगे लव लेटर


अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव की लव स्टोरी किसी सिनेमा की लव स्टोरी से कम नहीं है। पहली बार उनकी मुलाकात तब हुई थी, जब अखिलेश 21 साल के थे, जबकि डिंपल महज 17 साल की थीं। उनकी मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड के यहां हुई थी।
सुनीता एरन ने अखिलेश यादव पर ‘अखिलेश-बदलाव की लहर’ नाम की किताब लिखी है। इस किताब में उन्होंने डिंपल और अखिलेश के निजी जिंदगी से जुड़ी कई बातों का जिक्र किया है। इस किताब के मुताबिक अखिलेश और डिंपल दोस्त से मिलने का बहाना बनाकर एक दूसरे से छुप-छुपकर मिलते थे।

सिडनी जाने के बाद भी अखिलेश, डिंपल को लव लेटर और ग्रीटिंग कार्ड भेजते रहे। यह सिलसिला कुल 4 सालों तक चला अखिलेश जब पढ़ाई के बाद यूपी लौटे तो उन्होंने डिंपल से शादी करने का मन बना लिया था।
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मुलायम पहले से बहु सोच के रखे थे, लेकिन अखिलेश की दादी ने बचाया डिंपल का प्यार

नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव को जब डिंपल और अखिलेश की शादी की बात पता चली तो वो काफी नाराज हुए। वो इस रिश्ते के बिल्कुल खिलाफ थे। वो कतई नहीं चाहते थे कि उनकी शादी डिंपल से हो। जब अखिलेश को यह कन्फर्म हो गया कि नेताजी नहीं मानने वाले हैं तो उन्होंने अपनी दादी मूर्ति देवी को मनाया और डिंपल के लिए सिफारिश लगवाई।

दादी शुरुआती ना-नुकुर के बाद आखिरकार पोते की बात मान गईं और इस रिश्ते के लिए हामीं भर दीं। अखिलेश जिद्दी थे। उन्होंने घर में अघोषित बगावत छेड़ दी कि शादी होगी तो डिंपल से ही। नेताजी ने स्थिति को देखते हुए बेटे के जिद के आगे अपने जिद को किनारे किया और इस रिश्ते के लिए अपनी रजामंदी दे दी।
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‌डिंपल के चलते मुलायम के सामने दोहरी समस्या खड़ी हो गई, दोस्ती बचाते या वोटबैंक

मुलायम सिंह यादव के सामने एक और बड़ी राजनीतिक समस्या थी। मामला था उत्तराखंड के अलग राज्य बनने की। उस वक्त उत्तराखंड राज्य की अलग मांग हो रही थी और इस स्थिति में वहीं की एक लड़की से अखिलेश की शादी करवाना मुलायम को राजनीतिक नुकसान लग रहा था।

उस वक्त का एक किस्सा और है। कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव लालू यादव की बेटी से अखिलेश की शादी करना चाहते थे। ऐसे में फिर लालू को ना कहना भी मुश्किल था। या यूँ कहें कि दोस्त की नाराज होने का डर भी था। बाद में साल 2015 में लालू की बेटी राजलक्ष्मी से यादव परिवार में तेज प्रताप की शादी हुई।

डिंपल के पिता आर्मी में अफसर थे। शुरुआत में वो भी शादी के लिए तैयार नहीं थे लेकिन फिर बाद में दोस्तों और रिश्तेदारों के मनाने के बाद वो मान गए।


24 नवंबर 1999 को अखिलेश और डिंपल यादव की शादी हुई। अखिलेश और डिंपल की जोड़ी पॉलिटिक्स में सबसे सफल जोड़ियों में से एक मानी जाती है। डिंपल के तीन बच्चे हैं। उनके नाम अर्जुन, टीना और अदिति हैं। अदिति और टीना दोनों जुड़वा हैं।
 
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अब बात डिंपल के पॉलिटिक्स में डेब्यू की…


पहला चुनाव हार गईं, पांचवें चुनाव में रिकॉर्ड 5 लाख से ज्यादा वोट पाईं

डिंपल यादव की साल 2009 में पॉलिटिक्स में एंट्री हुई। उस साल अखिलेश यादव ने फिरोजाबाद लोकसभा सीट से इस्तीफा देकर कन्नौज लोकसभा सीट को चुना। डिंपल यहां से लोकसभा का पहला चुनाव लड़ीं। लेकिन, इस चुनाव में डिंपल का बैड लक रहा। वो कांग्रेस के नेता और बॉलीवुड के अभिनेता राज बब्बर से चुनाव हार गईं।

साल 2012 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तब कन्नौज सीट खाली हुई। डिंपल फिर चुनाव लड़ीं और कन्नौज से निर्विरोध चुनी गईं।


साल 2014 में डिंपल ने कन्नौज से तीसरी बार चुनाव लड़ीं और जीत गईं। लेकिन, साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा।

मुलायम सिंह यादव यानी नेताजी के निधन के बाद उन्होंने मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड 2 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की। यह उनका पांचवां चुनाव था और इसमें उनको 5 लाख से अधिक वोट मिले।
 
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रिश्तों को निभाने का हुनर जानती हैं डिंपल, भाई के नहीं होने पर भतीजी का किया कन्यादान

पॉलिटिक्स के अलावा डिंपल फैमिली को बहुत मानती हैं। आइए कुल 5 किस्सों में उनको जानते हैं…
किस्सा: 1

पिछले साल भतीजी दीपाली की शादी में डिंपल यादव और अखिलेश यादव ने कन्यादान किया था। दीपाली के पिता की डेथ हो चुकी है।

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किस्सा: 2

आज जब अखिलेश सूबे की सियासत देखते हैं तब डिंपल हर कदम पर उनका साथ देती हैं। डिंपल लगातार कोशिश करती हैं कि अखिलेश यादव की पब्लिक इमेज गुड हो। वो हर काम को सोच-समझकर बड़े ही प्लानिंग के साथ करती हैं।

दिसंबर 2016 में जब लखनऊ में मेट्रो का उद्घाटन हुआ तो उस दिन 2 महिला ड्राइवरों को भी बुलाया गया था। डिंपल यादव ने दोनों को मेट्रो की चाभी सौंपी थी। यह उनके ही प्लांनिग का हिस्सा था।
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किस्सा: 3

समाजवादी पार्टी में आंतरिक कलह की वजह से अखिलेश और मुलायम समेत पूरे परिवार की किरकिरी हो चुकी है। चाचा शिवपाल अलग पार्टी बना चुके थे। इन तमाम परिस्थितियों में भी डिंपल ने किसी के साथ रिश्ता खराब नहीं किया।

वो लगातार परिवार को एकजुट करने की कोशिशों में लगी रहीं। इससे उनकी छवी सकारात्मक पारिवारिक सदस्य की बनी। और इसमें वो कामयाब भी हुईं। मैनपुरी चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने चाचा शिवपाल यादव से आशीर्वाद मांगा। शिवपाल ने बहु को न सिर्फ आशीर्वाद दिया बल्कि प्रचार भी किया।
जीत के बाद शिवपाल की पार्टी का सपा में विलय हो गया। इस तरह से डिंपल, परिवार को एक करने की सूत्रधार बनीं।

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किस्सा: 4

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद परिवार को एकजुट रखने की जिम्मेदारी अखिलेश के साथ-साथ डिंपल के कंधो पर भी बराबर की थी। नेताजी के अंतिम संस्कार से लेकर तेरहवीं तक उन्होंने पुरे घर को एक साथ जोड़कर रखा। अखिलेश जहां राजनैतिक संबंधों को निभा रहे थे वहीं डिंपल ने परिवार और रिश्तेदारों का बखूबी से ध्यान रखा।
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किस्सा: 5

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद डिंपल ने उनके राजनितिक विरासत को संभालने का जिम्मा उठाया। नेताजी के निधन से खाली हुई मैनपुरी सीट से वो चुनाव लड़ीं।

 
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पूरे परिवार और मैनपुरी की जनता ने उनका साथ दिया और उन्होंने रेकॉर्डतोड़ जीत दर्ज की। इस जीत को डिंपल ने अपने ससुर मुलायम सिंह यादव को सच्ची श्रद्धांजलि बताया।

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