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लखनऊ

खांसी, बुखार के साथ बच्चे का वजन घटे तो, तुरंत कराएं टीबी की जांच

पीजीआई की डॉ. पियाली भट्टाचार्य ने कहा ‘बच्चों में टीबी का पता करना चुनौतीपूर्ण, स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात हों बाल रोग विशेषज्ञ ।

लखनऊMar 24, 2023 / 07:40 am

Ritesh Singh

बच्चों को इलाज नहीं मिलता

बच्चों को इलाज नहीं मिलता

प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की वजह से बच्चों में टीबी संक्रमण होने का खतरा अधिक रहता है। टीबी से प्रभावित होने के पीछे उनका कुपोषित होना, रोग को लेकर जानकारी की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं तक न पहुंच पाना भी है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को संक्रमण अक्सर घर के सदस्यों से होता है क्योंकि इसका अधिकतम समय घर में ही बीतता है।
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बच्चों में सर्दी, जुकाम, बुखार आम बात है

बच्चों में फेफड़े की टीबी की पता लगा पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इसके लिए लक्षणों की सही से पड़ताल, क्लीनिकल परीक्षण , सीने का एक्स रे और बच्चे के परिवार की टीबी हिस्ट्री का पता होना जरूरी है। एसजीपीजीआई की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पियाली भट्टाचार्य के अनुसार बच्चों में सर्दी, जुकाम, बुखार आम समस्या है। ऐसे में उनमें टीबी की पहचान करना कठिन होता है लेकिन इन समस्याओं के साथ अगर बच्चे का वजन नहीं बढ़ रहा है या घट रहा है तो टीबी की जांच जरूर कराएं।
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WHO: 15 साल से कम उम्र के बच्चों को मिल पाता है इलाज

यह भी ध्यान रखें कि बच्चे के बलगम का नमूना लेने में थोड़ी कठिनाई आती है, क्योंकि बच्चे उसे निगल जाते हैं। उन्होंने बताया कि क्षय रोग दुनिया भर में बच्चों में मृत्यु दर का प्रमुख कारण है। WHO का अनुमान है कि 15 साल से कम उम्र के 11 लाख बच्चों में से 50 प्रतिशत से कम को टीबी का इलाज मिल पाता है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में यह और भी कम है। इस उम्र वर्ग के केवल 30 फीसदी बच्चों का ही इलाज होता है। राज्य क्षय रोग इकाई से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 26, 450 बच्चे फिलहाल क्षय रोग से ग्रसित हैं।
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सही समय पर बच्चों को इलाज नहीं मिलता

डॉ. पियाली ने कहा कि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर बाल रोग विशेषज्ञों की कमी के कारण बच्चों की बीमारियों के इलाज में दिक्कत होती है। ऐसी स्थिति में या तो बच्चों का उपचार देर से शुरू होता है, या फिर शुरू ही नहीं होता। दोनों स्थितियां खराब परिणामों की ओर इशारा करती हैं।

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