डॉ विलियम डेविस की शोध अमेरिका के प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ हैं डॉ विलियम डेविस। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी 2011 में जिसका नाम था “Wheat Belly: Lose the Wheat, Lose the Weight, and Find Your Path Back to Health”. इस किताब में डॉ डेविस ने लिखा है कि अगर अमेरिका सहित पूरी दुनिया को अगर मोटापे, डायबिटिज और हृदय रोगों से स्थाई मुक्ति चाहिए तो उन्हें गेहूं को त्यागना होगा।
डॉ डेविस ने अपनी किताब में लिखा है कि, गेहूं के सेवन करने से, शरीर में चीनी की मात्रा आश्चर्यजनक पूर्वक बढ़ जाती है। सिर्फ दो गेहूं की बनी ब्रेड स्लाइस खाने मात्र से ही हमारे शरीर में चीनी की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है जितना तो एक स्नीकर्स बार(चॉकलेट, चीनी और मूंगफली से बनी) खाने से भी नहीं होता। उन्होंने आगे बताया कि, “जब मेरे पास आने वाले रोगियों ने गेहूं का सेवन रोक दिया था, तो उनका वजन भी काफी घटने लगा था, खास तौर पर उनकी कमर की चरबी घटने लगी थी। एक ही महीने के अंदर अंदर उनके कमर के कई इंच कम हो गए थे।”
डॉ डेविस के मुताबिक “गेहूं का हमारे कई सारे रोगों से संबंध है ऐसा जानने में आया है। मेरे पास आने वाले कई रोगियों को डायबिटीज की समस्या थी या वे डायबिटीज के करीब थे। मैं जान गया था के गेहूं शरीर में चीनी की मात्रा को बढ़ा देता है, जो किसी भी अन्य पदार्थ के मुकाबले अधिक था, इसलिए, मैंने कहा के, “गेहूँ का सेवन बंद करके देखते है, कि इसका असर शरीर में चीनी की मात्रा पर किस तरह होता है।” उनके मुताबिक इसके आश्चर्यजनक परिणाम मिले। 3 से 6 महीनों से अंदर अंदर ही उन सब के शरीर में से चीनी की मात्रा बहुत कम हो गई थी। इसके साथ साथ वे मुझसे आकर यह भी कहते थे, के मेरा वजन 19 किलो घट गया है, या मेरी अस्थमा की समस्या से मुझे निवारण मिल गया, या मैंने अपने दो इन्हेलर्स फेंक दिए है। 20 सालों से जो मुझे माइग्रेन का सिरदर्द होता रहा है, वो मात्र 3 दिनों के अंदर ही बिल्कुल बंद हो गया है। मेरे पेट में जो एसिड रिफ्लक्स की समस्या थी वो बंद हो गई है आदि-आदि।
डॉ डेविस की रिसर्च के मुताबिक, गेहूं की बनावट को देखा जाए तो इसमें – 1. अमलोपेक्टिन A, एक रसायन जो सिर्फ गेहूं में ही पाया जाता है, जो खून में LDL के कणों को काफी मात्रा में जगा देता है, जो ह्रदय रोग का सबसे मुख्य कारण पाया गया है। गेहूं का सेवन बन्द कर देने से LDL कणों की मात्रा 80 से 90 % तक घट जाती है।
2. गेहूं में बहुत अधिक मात्रा में ग्लैडिन भी पाया जाता है, यह एक प्रोटीन है जो भूख बढ़ाने का काम करती है। इस कारण से गेहूं का सेवन करने वाला व्यक्ति एक दिन में अपनी ज़रूरत से ज़्यादा, कम से कम 400 कैलोरी अधिक सेवन कर जाता है। ग्लैडिन में ओपीएट के जैसे गुण भी पाए गए है जिसके कारण इसका सेवन करने वाले को इसकी लत लग जाती है, नशे की तरह।
3. क्या गेंहू का सेवन बंद कर देने से हम ग्लूटेन मुक्त हो जाते है? ग्लूटेन तो गेहूं का सिर्फ एक भाग है। ग्लूटेन को निकाल कर भी गेंहू को देखे, तो वो फिर भी घातक ही कहलायेगा क्योंकि इसमें ग्लैडिन, अमलोपेक्टिन A के साथ साथ और भी अनेक घातक पदार्थ पाए गए है।
डॉ डेविस ने कहा कि, मैं आप लोगों से आग्रह करता हूँ कि सच्चा आहार लेना आरंभ करें, कच्चा आहार लेना आरम्भ करें। जैसे के फल, सब्जियां, दाने, बीज, घर का बना पनीर, इत्यादि। चावल, फल और सब्जियां है तो भी वजन घटाने में मदद ही होगी क्योंकि चावल चीनी की मात्रा को इतना नही बढ़ता है जितना गेहूं बढ़ाता है।
क्या होता है ग्लूटेन? ग्लूटेन गेहूं में पाया जाने वाला एक प्रोटीन होता है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होता है। इंसान के पेट में यह प्रोटीन आसानी से नहीं पच पाता है, तब यह पेट में जमना शुरू हो जाता है और बाद में पेट संबंधी बीमारियों की वजह बन जाता है। यह प्रोटीन या लसलसा पदार्थ इतना जहरीला हो जाता है कि छोटी आंत को प्रभावित करने लगता है। इस दौरान लसलसा पदार्थ पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाता और समस्या बढ़ती चली जाती है।
गेहूं का इतिहास दरअसल गेहूं मूलतः भारत की फसल है ही नहीं। यह मध्य एशिया और अमेरिका की फसल है जो ये यूरोप से होता हुआ भारत तक आया था। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर हमें भी स्वस्थ रहना है तो हमें अपनी पुरानी शैली को एक बार फिर अपनाना होगा। जिसमें ज्वार, बाजरा, रागी, चना, मटर, कोदरा, जौ, सावां जैसे अनाज ही खाते थे गेंहू नहीं। पहले भारत में जौ की रोटी बहुत लोकप्रिय थी और मौसम अनुसार मक्का, बाजरा, ज्वार आदि। हमारे के मांगलिक कार्यों में भी जौ अथवा चावल (अक्षत) ही चढ़ाए जाते रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों में भी इन्हीं दोनों अनाजों का अधिकतम जगहों पर उल्लेख है।