अनुकूल है यहां की मिट्टी
प्रतापगढ़ के ग्राम भदौना निवासी किसान उत्कृष्ट पांडेय के मुताबिक चंदन की खेती के लिए प्रदेश का वातावरण अनुकूल है। प्रदेश में छिटपुट रूप से चंदन होता रहा है जिसका वर्णन साहित्य में मिलता है, किंतु एक मुहिम के रूप में चंदन की खेती की शुरुआत की जा चुकी है। इसके लिए 6-8 पीएच वाली मिट्टी की जरूरत होती है और तापमान 5-45 डिग्री के बीच होना चाहिए, जल जमाव की स्थिति नहीं होनी चाहिए, जबकि बारिश 400 से 1500 एमएम के बीच होनी चाहिए, ये सभी अनुकूल कारक प्रदेश में मौजूद है।
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चंदन का पौधा किसी भी मौसम में लगा सकते हैं। इसको बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती। इसे आप पूरे खेत के साथ कम जमीन में फेंसिंग/मेड़ के रूप में भी लगा सकते हैं। चंदन के पौधों को कम पानी की आवश्यकता होती है, साथ ही कृषिवानिकी के लिए अनुकूल पौधा है।
मामूली लागत में करोड़ों की कमाई
एक चंदन का पेड़ तैयार होने में 15/16 साल तक का समय लेता है। लगभग 6 वर्ष बाद से हर्टवुड बनाने लगती है जो चंदन के सुगंध का कारण होती है। चंदन के पेड़ों के साथ-साथ अन्य औषधीय और फलदार पेड़ लगाकर अच्छी कमाई की जा सकती है। चंदन का पौधा किसानों को 100 रुपये से 150 रुपये तक में मिल जाता है। एक एकड़ में 250 से 300 पौधे लगाए जा सकते हैं। चंदन के एक पेड़ से किसान 2 से 3 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।
मार्केट कहां है
चन्दन का उत्पादन आपूर्ति के मुक़ाबले काफी कम है। ऐसे में इसकी मार्केटिंग, बिक्री में कोई परेशानी नहीं होती है। यूपी में कन्नौज, जहां इत्र का काम होता हैं यह बड़ा बाजार है। यहां चंदन की मांग बहुत ज्यादा हैं। इसके अलावा दक्षिण में कर्नाटक फारेस्ट, कर्नाटका सोप्स एंड डिटर्डेंट लिमिटेड (KSDL), एससेंशियल ऑयल निर्माताओं जैसे बड़े खरीदार हैं।
कीमत
चंदन की लकड़ी को सबसे महंगी लकड़ी माना जाता है इसका बाजार मूल्य करीब 10 हजार से 15 हजार रुपये प्रति किलो तक है। एक पेड़ से किसान को 15 से 20 किलो लकड़ी आराम से मिल जाती है। ऐसे में उसे एक पेड़ से 2 से 3 लाख रुपये तक आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। जबकि चंदन का तेल गुणवत्ता के आधार पर 4-5 लाख रुपये/लीटर के हिसाब से बिकता है। वर्तमान समय में चंदन की भारी मांग को देखते हुए इसकी खेती की जाने लगी है।।
कहाँ होता है इस्तेमाल
• चंदन का इस्तेमाल सबसे ज्यादा परफ्यूम में किया जाता है।
• आयुर्वेद में चंदन का खूब इस्तेमाल किया जाता है।
• इसे तरल पदार्थ (चंदन का तेल ) के रूप में भी तैयार किया जाता है।
• इसके अलावा ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
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इस बीच चंदन और काली हल्दी की खेती का विचार आया है। पांडे ने बताया कि हर कोई समझता है कि चंदन को सिर्फ दक्षिण भारत में ही उगाया जा सकता है, लेकिन जब इससे जुड़ी जानकारियां इकट्ठी कीं तो पता चला कि उत्तर प्रदेश भी सफेद चंदन की खेती के लिए अनुकूल है। उसके बाद बैंगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ वुड साइंस एवं टेक्नोलॉजी से कोर्स भी किया, जो आज चंदन पर रिसर्च करने वाला सबसे बड़ा इंस्टीट्यूट है।मुख्यमंत्री योगी ने नामचीन उद्योगपतियों को कराया अपने घर में भोजन, देखे तस्वीरें
आज मैं अपने पुरखों की 4 एकड़ जमीन पर चंदन लगा चुका हूँ और आस-पास के किसानों के साथ इसे बड़े पैमाने पर करना चाहता हूँ। हमारे मार्सिलोन एग्रोफार्म पर समय समय पर किसानों को निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है जिनमे उन्हें चंदन की खेती के साथ अन्य औषधीय पौधों की खेती जैसे ,काली हल्दी कस्तूरी हल्दी , काला नमक धान आदि के बारे में बताया जाता है।
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने किया अधिकृत
उन्होने बताया कि दूसरे प्रदेश के लोग भी उनके खेत पर जानकारी लेने और एग्री टूरिज़्म के लिए आते है। इसका फार्म मिट्टी के स्वास्थ पर भी काम करता है इसके फार्म पर प्राकृतिक और जैविक तरीके से कृषि की जाती है ताकि मिट्टी जहर मुक्त बनी रहे।भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने इनके मर्सी लोन एग्रो फार्म को प्राकृतिक और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अधिकृत किया हुआ है।
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पांडे कहते है कि चूंकि चंदन हमारी धार्मिक धरोहर का पौधा है इसलिए इसका सरंक्षण एवम संवर्धन करना हम सब की जिम्मेदारी है। (https://marceloneagrofarms.com/) आज दुनिया में चंदन की काफी ज्यादा मांग है और आपूर्ति कम है जिससे इसकी खेती लाभदायक है। किसान इसकी खेती करके अपनी आर्थिक विकास कर सकता है। इसका इस्तेमाल परफ्यूम बनाने में किया जाता है, लेकिन इसके कुछ औषधीय गुण भी हैं।इन जिलों में हो रही खेती
प्रतापगढ़, अमेठी, सुल्तानपुर, अयोध्या, अंबेडकर नगर, कानपुर, उरई, एटा, जौनपुर, बनारस, भदोही, प्रयागराज , कौशाम्बी, फतेहपुर, बांदा, चित्रकूट, झांसी, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, गोरखपुर, गाजीपुर, देवरिया, बदायूं आदि जिलों में खेती हो रही है।–