अंबाला, हरियाणा के एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मीं सुचेता कृपलानी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। प्रसिद्ध गांधीवादी नेता जीवटराम भगवानदास कृपलानी (जे.बी. कृपलानी) उनके पति थे। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक साल के लिए सुचेता कृपलानी को जेल भी जाना पड़ा। सुचेता कृपलानी उन महिलाओं में से थीं जिन्होंने महात्मा गांधी के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी। सुचेता कृपलानी भले ही दिल की कोमल थीं पर प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में उत्तर प्रदेश के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुईं, जब उनके रुख में नरमी आई। 1958 से 1960 तक कांग्रेस की महासचिव रहीं।
1940 में सुचेता कृपलानी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महिला शाखा, ‘अखिल भारतीय महिला कांग्रेस’ की स्थापना की। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के चलते एक साल के लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 1946 में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं। 1949 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रतिनिधि के रूप में चुना गया। भारत को आजादी मिलने के बाद जेबी कृपलानी ने जवाहर लाल नेहरू से अलग होकर खुद की पार्टी ‘किसान मजदूर प्रजा पार्टी’ बनाई। 1952 में सुचेता ने किसान मजदूर पार्टी के टिकट पर नई दिल्ली से सांसदी का चुनाव जीता, लेकिन राजनैतिक मतभेद के चलते वह फिर से कांग्रेस में लौट आईं। 1957 में कांग्रेस के टिकट पर दोबारा दिल्ली से चुनाव जीतकर संसद पहुंची। जवाहरलाल नेहरू की सरकार में वह राज्यमंत्री रहीं।
जवाहरलाल नेहरू ने अचानक सुचेता कृपलानी को यूपी में राजनीति करने के लिए भेजने का अप्रत्याशित फैसला लिया। यहां वह बस्ती जिले की मेंढवाल विधानसभा सीट से विधायक चुनी गईं। 1963-1967 तक वह प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। बाद में 1967 में गोंडा से जीतकर ये सुचेता फिर से संसद पहुंचीं। 1971 में राजनीति से सन्यास ले लिया।
1962 में यूपी में कांग्रेस के दो धड़े हो गये थे।
1962 में यूपी में कांग्रेस के दो धड़े हो गए। एक कमलापति त्रिपाठी का था और दूसरा चंद्रभानु गुप्ता का। कहते हैं कि गुप्ता ने ही सुचेता को मुख्यमंत्री बनने के लिए उकसाया था, क्योंकि गुप्ता खुद चुनाव हार गये थे। वह कमलापति को मुख्यमंत्री नहीं बनने देना चाहते थे।