Political Kisse : यूपी का ऐसा सीएम जो चाय-नाश्ते का पैसा भी भरता था अपनी जेब से
Political Kisse: आज की पॉलिटिकल किस्से में हम बात करेंगे पंडित गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) की। उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री। ऐसे मुख्यमंत्री जो चाय-नाश्ते का पैसा भी अपनी जेब से भरते थे। पहाड़ की सीधी-सादी जिन्दगी से उतरकर यूपी की घाघ सियासत में आना और फिर छा जाना कोई आम बात नहीं था।
Political Kisse: आज की पॉलिटिकल किस्से में हम बात करेंगे पंडित गोविंद बल्लभ पंत की। उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री। ऐसे मुख्यमंत्री जो चाय-नाश्ते का पैसा भी अपनी जेब से भरते थे। पहाड़ की सीधी-सादी जिन्दगी से उतरकर यूपी की घाघ सियासत में आना और फिर छा जाना कोई आम बात नहीं था। अल्मोड़ा में जन्मे गोविंद बल्लभ पंत मूल रूप से मराठी थे।
यह भी पढ़े : पैराशूट महिला जो बनीं यूपी की मुख्यमंत्री, सख्त निर्णयों के लिए थीं विख्यातराजनीति में आने का किस्सा भी दिलचस्प घरवाले प्यार से इन्हें थपुआ कहते थे। वजह ये कि बचपन में बहुत मोटे थे और बच्चों के साथ खेलने की बजाय एक ही जगह बैठे रहते थे। पंडित गोविन्द बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) की व्यक्तिगत जिन्दगी और उनका राजनीतिक सफर बड़ा रोचक और दिलचस्प है। यही नहीं पंत जी का राजनीति में आने का किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है। दरअसल राजनीति में आने से पहले गोविंद बल्लभ पंत वकालत किया करते थे। एक दिन वह चैंबर से गिरीताल घूमने चले गये। वहाँ उन्होंने देखा कि दो लड़के आपस में स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में चर्चा कर रहे थे। यह सुन पंत ने उन युवकों से पूछा कि क्या यहां पर भी देश-समाज को लेकर बहस होती है? इस पर उन युवकों ने कहा कि यहाँ बस नेतृत्व की जरूरत है। बस उसी समय से पंत जी ने वकालत छोड़ राजनीति में आने का मन बना लिया।
यह भी पढ़े : यूपी का वह सीएम जो सिर्फ एक दिन के लिए ही बैठा गद्दी परनेहरू जी से हुई थी एक्सीडेंटली मुलाक़ात 1921 में गोविन्द बल्लभ पंत ने सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया और लेजिस्लेटिव असेंबली में चुने गये। उस वक्त उत्तर प्रदेश, यूनाइटेड प्रोविंसेज ऑफ आगरा और अवध होता था। 1932 में पंत जी एक्सिडेंटली पंडित नेहरू के साथ बरेली और देहरादून जेलों में बंद रहे। उस दौरान ही पंडित नेहरू से इनकी यारी हो गयी। नेहरू इनसे बेहद प्रभावित थे। जब कांग्रेस ने 1937 में सरकार बनाने का फैसला किया तो बहुत सारे लोगों के बीच से पंत का ही नाम नेहरू के दिमाग में आया था। नेहरू का पंत पर भरोसा आखिर तक बना रहा।
यह भी पढ़े : आखिर बीएसपी सुप्रीमो मायावती को क्यों कहा जाता है यूपी की परफेक्ट वीमेन पॉलिटिशनहिन्दी को दिलाया राजकीय भाषा का दर्जा 1955 से 1961 के बीच गोविंद बल्लभ पंत केंद्र सरकार में गृह मंत्री रहे। गृह मंत्री रहने के दौरान उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन। उस वक्त ये आशंका जतायी जा रही थी कि ये देश की एकता के लिए घातक हो सकती है मगर हुआ ठीक इसके उलट। हाँलाकि अगर पंत जी को सबसे अधिक किसी चीज़ के लिए जाना जाता है, तो हिंदी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए ही। 1957 में इनको भारत रत्न मिला।
उनके मुख्यमंत्रित्व काल की एक बड़ी रोचक घटना है। एक बार पंत जी सरकारी बैठक कर रहे थे। जाहिर सी बात थी कि जब मुख्यमंत्री खुद बैठक कर रहे हों तो उसमें चाय-नाश्ते का इंतजाम होना ही था। बाद में जब बैठक के चाय-नाश्ते का बिल पास होने उनके पास आया तो उन्होंने बिल पास करने से मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद देना होगा। हां, चाय का बिल जरूर पास हो सकता है।नाश्ते पर हुए खर्च को मैं सरकारी खजाने से चुकाने की इजाजत कतई नहीं दे सकता। उस खजाने पर जनता और देश का हक है, मंत्रियों का नहीं। यह सुनकर सभी अधिकारी चुप हो गए।
खैर… पंत जी के व्यक्तित्व का किस्सा बहुत लंबा है। मगर कुछ रोचक और बड़ी बातों की चर्चा यहाँ करते हैं। पंडित गोविंद बल्लभ पंत पढ़ने में बेहद होशियार थे मगर 10 साल की उम्र तक उन्होंने स्कूल का मुँह नहीं देखा था। 14 साल की उम्र में ही पंत जी को हार्ट अटैक आ गया था। पंत जी ने तीन शादियाँ की थीं।
Hindi News / Lucknow / Political Kisse : यूपी का ऐसा सीएम जो चाय-नाश्ते का पैसा भी भरता था अपनी जेब से