उत्तर प्रदेश में 41 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं। इनमें 13 फीसदी यादव, 12 फीसदी कुर्मी और 3.6 फीसदी जाट हैं। इसके अलावा कई सीटों पर लोधी, निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, राजभर, मौर्य, कश्यप, कुहार, प्रजापति जैसी छोटी जातियों का भी खासा प्रभाव है। 21 फीसदी दलितों में जाटव, बाल्मीकि, पासी, धोबी और कोरी प्रमुख जातियां हैं, जिनमें 66 उपजातियां हैं। इसमें जाटव समुदाय का वोट सबसे ज्यादा करीब 56 फीसदी है। वहीं, पासी 16 फीसदी, धोबी, कोरी और बाल्मीकि 15 फीसदी, जबकि गोंड, धानुक और खटीक 5 फीसदी हैं। इसके अलावा प्रदेश में करीब 19 फीसदी मुस्लिम, 12 फीसदी ब्राह्मण और 7 फीसदी ठाकुर हैं।
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युवा सम्मेलन भी करेगी भाजपा
भारतीय जनता पार्टी का फोकस उन युवाओं पर भी है, जो इस बार पहली बार वोट करेंगे। ऐसे युवाओं को जोड़ने के लिए भाजपा सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में युवाओं को लेकर विशेष अभियान चलाएगी। इसके तहत युवा सम्मान कार्यक्रमों से लेकर पार्टी यूथ कॉन्क्लेव तक करेगी। 2017 का विधानसभा चुनाव हो या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी को जिताने में युवाओं की भूमिका अहम रही है। इस बार भी भाजपा इनके सहारे ही चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है। युवाओं को पार्टी से जोड़ने का जिम्मा यूथ आइकॉन माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को सौंपा गया है। भाजपा नेता-कार्यकर्ता युवा सम्मेलनों के जरिए युवाओं को पार्टी के कार्यक्रमों में लाएंगे और उन्हें पार्टी की सदस्यता भी दिलाएंगे।
समाजवादी पार्टी ‘यादवों की पार्टी’ है, इस बार अखिलेश यादव इस ठप्पे से छुटकारा पाने की जुगत में हैं। 2022 में जीत के लिए समाजवादी पार्टी गैर यादव पिछड़ों में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। इसके लिए सपा की ओर से कुर्मी, मौर्य, निषाद, कुशवाहा, प्रजापति, सैनी, कश्यप, वर्मा, काछी, सविता समाज व अन्य पिछड़ी जातियों को जोड़ने का विशेष अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत प्रदेश भर में अलग-अलग हिस्सों में यात्राएं निकाली जा रही है, जिनका नेतृत्व गैर यादव पिछड़े नेता कर रहे हैं। पिछड़ा वर्ग सम्मेलन भी किए जा रहे हैं। जातिगत जनगणना की भी मांग उठाई जा रही है।