लखनऊ. लंका दहन की बात हो तो जेहन में झट से हनुमान जी का नाम आ जाता है। लेकिन आज हम आपको लंका दहन के बारे में कुछ ऐसा बताने जा रहे हैं, जो आपने शायद ही पहले कहीं सुना हो। कथावाचक रामाचार्य शास्त्री की मानें तो रामचरित मानस में साफ लिखा है कि लंका हनुमान ने नहीं, बल्कि पांच और लोगों ने जलाई थी। नैमिष क्षेत्र में हजारों की संख्या बैठे श्रद्धालुओं के बीच रामाचार्य शास्त्री ने जैसे ही तथ्यों के साथ लंका दहन की कथा सुनाई, श्रीराम और हनुमान जी की जयकारों से कथा पांडाल गूंज उठा। आइए जानते हैं कि हनुमान जी ने नहीं, बल्कि किन पांच लोगों ने लंका जलाई थी।
रामाचार्य शास्त्री ने बताया कि लंका दहन के बाद जब हनुमान जी वापस श्रीराम के पास पहुंचे तो उन्होंने पूछा मैंने तो आपको सीता की कुशलक्षेम लेने भेजा था आपने तो लंका ही जला डाली। तब परम बुद्धिमान हनुमान जी ने भगवान राम को उत्तर देते हुए कहा। महाराज लंका मैंने नहीं बल्कि आपको मिलाकर पांच लोगों ने जलाई है। भगवान राम ने पूछा कैसे और किन पांच लोगों ने लंका जलाई और मैं कैसे शामिल हूं?
हनुमान जी ने कहा कि प्रभु लंका जलाई आपने, रावण के पाप ने, सीता के संताप ने, विभीषण के जाप ने और मेरे बाप ने। पढ़िए कैसे?
1- लंका जलाई आपने
हनुमान जी ने कहा भगवन सभी को पता है कि बिना आपकी मर्जी के पत्ता तक नहीं हिलता, फिर लंका दहन तो बहुत बड़ी बात है। हनुमान जी ने कहा कि जब मैं अशोक बाटिका में छिपकर सीता माता से मिलना चाह रहा था, वहां राक्षसियों का झुंड था, जिनमें एक आपकी भक्त त्रिजटा भी थी। उसने मुझे संकेत दिया था कि आपने मेरे जरिए पहले से ही लंका दहन की तैयारी कर रखी है। इसे तुलसीदास ने भी रचित रामचरित मानस में लिखा है कि जब हनुमान पेड़ पर बैठे थे, त्रिजटा राक्षसियों से कह रही थी।
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना, सीतहि सेई करौ हित अपना।
सपने बानर लंका जारी, जातुधान सेना सब मारी।
यह सपना मैं कहौं पुकारी, होइहि सत्य गये दिन चारी।
2- रावण के पाप ने
हनुमान जी ने कहा हे प्रभु भला मैं कैसे लंका जला सकता हूं। उसके लिए तो रावण खुद ही जिम्मेदार है। क्योंकि वेदों में लिखा है, जिस शरीर के द्वारा या फिर जिस नगरी में पाप बढ़ जाता है, उसका विनाश सुनिश्चित है। तुलसीदास लिखते हैं कि हनुमान जी रावण से कह रहे हैं-
सुनु दसकंठ कहऊं पन रोपी, बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।
संकर सहस बिष्नु अज तोही, सकहिं न राखि राम कर द्रोही।
3- सीता के संताप ने
हनुमान जी ने श्रीराम से कहा, प्रभु रावण की लंका जलाने के लिए सीता माता की भूमिका भी अहम है। जहां पर सती-सावित्री महिला पर अत्याचार होते हैं, उस देश का विनाश सुनिश्चित है। सीता माता के संताप यानी दुख की वजह से लंका दहन हुआ है। सीता के दुख के बारे में रामचरित मानस में लिखा है-
कृस तनु सीस जटा एक बेनी, जपति ह्रदय रघुपति गुन श्रेनी।
निज पद नयन दिएं मन रामम पद कमल लीन,
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन।।
4- लंका जलाई विभीषण के जाप ने
हनुमान जी ने कहा कि हे राम! यह सर्वविदित है कि आप हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। और विभीषण आपके परम भक्त थे। वह लंका में राक्षसों के बीच रहकर राम का नाम जपते थे। उनका जाप भी एक बड़ी वजह है लंका दहन के लिए। रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने लिखा है कि लंका में विभाषण जी का रहन-सहन कैसा था-
रामायुध अंकित गृह शोभा बरनि न जाई,
नव तुलसिका बृंद तहं देखि हरषि कपिराई।
रामचरित मानस में तुलसीदास लिखते हैं कि विभीषण बताते हैं कि वो लंका में कैसे रहते थे-
सुनहु पवनसुत रहनि हमारी, जिमि दसनन्हि महुं जीभ बिचारी।
5- लंका जलाई मेरे बाप ने
हनुमान जी ने कहा भगवन, लंका जलाने वाले पांचवें सदस्य मेरे पिता जी (पवन देव) हैं। क्योंकि जब मेरी पूंछ से एक घर में आग लगी थी तो मेरे पिता ने भी हवाओं को छोड़ दिया था, जिससे लंका में हर तरफ आग लग गई। तुलसीदास ने लिखा है-
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास,
अट्टहास करि गरजा पुनि बढ़ि लाग अकास।