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लखनऊ

अनूठी परंपरा:यहां रावण परिवार के पुतलों का पूरे शहर में निकलता है जुलूस

Unique Dussehra Festival:उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में दशहरा पर्व बड़े खास तरीके से मनाया जाता है। यहां के दशहरे में न केवल रावण बल्कि उसके खानदान के कई प्रमुख राक्षसों के पुतलों का जुलूस पूरे शहर में घुमाया जाता है। उसके बाद उन पुतलों का ग्राउंड में दहन किया जाता है।

लखनऊOct 12, 2024 / 06:20 pm

Naveen Bhatt

Dussehra festival of Almora, Uttarakhand is special

अल्मोड़ा के दशहरे में रावण परिवार के पुतलों का पूरे नगर में जुलूस निकलता है

Unique Dussehra Festival:सांस्कृतिक और पर्यटन नगरी अल्मोड़ा अपनी अनूठी संस्कृति और कला के लिए देश भर में खासा प्रसिद्ध है। उत्तराखंड की इस सांस्कृतिक नगरी का दशहरा पर्व खुद में खास है। पूरे देश में दशहरे के मामले में अल्मोड़ा का कुल्लू और मैसूर के बाद तीसरा स्थान आता है। यहां के दशहरे में न केवल रावण बल्कि मेघनाद, कुंभकर्ण, मकराक्ष, सुबाहू, अहिरावण,अक्ष कुमार, कालकेतू, कुंड, ताड़का, देवांतक, खर, मायासुर, विरत, धूम्राक्ष, ज्वालासुर सहित करीब दो दर्जन राक्षसों के पुतलों का निर्माण किया जाता है। हालांकि ये संख्या थोड़ा ऊपर-नीचे होती रहती है। दशहरे के दिन ढोल-नगाड़ों के साथ पूरे नगर में रावण परिवार के पुतलों का जुलूस निकाला जाता है। देर रात उन पुतलों का मैदान में दहन किया जाता है। इस अनूठी परंपरा के साक्षी बनने के लिए देश और विदेश से हजारों लोग यहां पहुंचते हैं।

वर्ष 1860 से बन रहे पुतले

अल्मोड़ा नगर में दशहरे पर रावण परिवार के पुतलों के निर्माण की परंपरा करीब डेढ़ सौ साल पहले से चली आ रही है। यहां के हर एक मोहल्ले से रावण परिवार के एक-एक राक्षस का पुतला बनाया जाता है। मोहल्ले के कारीगर करीब एक माह पहले से ही पुतले निर्माण में जुट जाते हैं। दशहरे के लिए उन सभी पुतलों को एक स्थान पर लाकर वहां से ढोल-नगाड़ों के साथ जुलूस निकाला जाता है। सबसे आकर्षक पुतला बनाने वाली कमेटी को पुरस्कृत किया जाता है।
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इस दशहरे में 17 पुतले बनाए

अल्मोड़ा के दशहरे में इस बार रावण परिवार के 17 पुतलों का निर्माण किया गया है। विजयदशमी पर आज को नगर में रावण परिवार के 17 पुतलों का भव्य जुलूस निकाला जा रहा है। देर रात एसएसजे परिसर के जंतु विज्ञान परिसर के निकट पुतलों का दहन किया जाएगा। कुल्लू के बाद अल्मोड़ा का दशहरा पर्व पूरे देश में प्रसिद्ध है। दशहरा महोत्सव समिति के पूर्व अध्यक्ष मनोज सनवाल के मुताबिक 1860 में नगर के बद्रेश्वर में पहली रामलीला का मंचन किया गया। इस रामलीला में घास के ढेर को प्रतीकात्मक रावण के रूप में जलाया गया था। बद्रेश्वर में स्थापित शिव मंदिर परिसर में ही तब रामलीला मंचन और रावण के पुतले का दहन होता था

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