संकट मोचन के इस अक्षयवट मंदिर की स्थापना 56 वर्ष पूर्व 1960 मे स्टाफ क्लब झींझक के अध्यक्ष व नगर पंचायत झींझक चेयरमैन स्व. मन्नीबाबू तिवारी के द्वारा की गई थी। उसके बाद चेयरमैन ने क्लब के वंशलाल, सुरजन सिंह, कैलाश व ध्रुव कुमार आदि सदस्यों ने प्रथम हवन पूजन कराया था। तब से इस इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमडंने लगी। धीरे-धीरे जब लोगों को मंदिर में अक्षयवट वृक्ष लगे होने की जानकारी हुयी तो दूर-दूर जनपदों के लोग आकर मत्था टेकने लगे। कहा जाता है रेलवे लाइन किनारे एकांत में स्थित इस मंदिर की छटा निराली है, जहाँ झींझक के बजरंग सेवा समिति द्वारा बुढवा मंगल के दिन भव्य प्रसाद वितरण किया जाता है और भक्त मेले का आनंद उठाते हैं।
इस मंदिर की है प्राचीन कहानी 1960 के प्राचीन समय में यहाँ एक घना जंगल था। बनारस के ब्रह्मचारी राधेकृष्ण झींझक आए हुए थे, वह शौचक्रिया के लिए रेलवे लाइन किनारे जा रहे थे। अचानक जंगल में खड़े दो अक्षयवट वृक्ष पर उनकी नजर पड़ी। शौचक्रिया किए बिना वापस आकर वह चेयरमैन के गले लगकर रोते हुए कहने लगे, इस वृक्ष के तो दर्शन दुर्लभ हैं। तब उन्होंने बताया कि यह अक्षयवट वृक्ष है, इस वृक्ष के नीचे भगवान स्वयं बैठते हैं। होलिकाष्टमी का दिन था, चेयरमैन मन्नीबाबू तिवारी ने ब्रम्हचारी की बात सुन उस परिसर में एक शिला रखकर मंदिर की स्थापना अक्षयवट नाम से की और गोविंद शरण तिवारी महंत अक्षयवट वृक्ष की सेवा कार्य में लग गए। जिसके बाद से प्रत्येक वर्ष होली की अष्टमी पर मंदिर परिसर में विशाल मेले का आयोजन किया जाने लगा। करीब साढ़े तीन बीघा में बने इस मंदिर में फिर करीब 5 वर्ष बाद भगवान बाला जी की स्थापना भी की गई। उनकी अनुकम्पा से आज औरैया, इटावा, फर्रुखाबाद, उन्नाव, कन्नौज, फिरोजाबाद, दिल्ली आदि अन्य दूर दराज जिले के लोग यहां
अक्षयवट वृक्ष के दर्शन करने के लिए आते हैं। हालांकि आज भी वृक्ष जर्जर अवस्था में विराजमान है।
बुढवा मंगल को भक्तों का लगता है मेला मंदिर मे भक्तों की इतनी आस्था है कि पुरुषों के अतिरिक्त महिलाएं भी भारी तादात मे दर्शन को जाती हैं। बुढवा मंगल के दिन झींझक की बजरंग सेवा समिति रूबी जैन, सुनील गुप्ता, अनुराग गुप्ता, मोनू पोरवाल सहित समिति के तमाम सदस्यों द्वारा देशी घी के पुआ व बूंदी का प्रसाद समूचे दिन वितरित किया जाता है। इसके लिए एक दिन पूर्व से ही भव्य तैयारी की जाती है। मंदिर के बाहर विशाल मेला लगता है। दर्शन के लिए आए भक्त पूजा अर्चना करने के बाद मेले का लुत्फ उठाते है। स्व. मुन्नीबाबू के पुत्र पूर्व चेयरमैन सतोष तिवारी ने बताया कि अक्षयवट
वृक्ष की अनुकम्पा से आज तक यह क्षेत्र में ओलावृष्टि, तूफान, भूकम्प व आकाशीय बिजली जैसी दैवीय आपदाओं से सुरक्षित है। आज भी लोग अक्षयवट वृक्ष की परिक्रमा कर मुरादे मांगते हैं। अक्षयवट परिसर में आने वाले प्रत्येक भक्त की मुराद पूरी होती है। कस्बा के एक वयोवृद्ध छुन्ना शुक्ला ने बताया कि करीब 11 वर्ष पूर्व भिंड से आए सुरेश ठाकुर के मंदिर के चौखट चढऩे पर ही उनके शरीर में कम्पन हुआ, तो उन्होंने मंदिर में पूजन कराते हुए इसको सिद्ध पीठ घोषित किया था।