यह भी पढ़े : जब मैले-कुचैले धोती-कुर्ता पहन गरीब किसान के वेश में खुद रिपोर्ट दर्ज कराने थाने पहुंचे थे प्रधानमंत्री वाराणसी में हुआ था जन्म संपूर्णानंद का जन्म 1 जनवरी 1890 को बनारस में हुआ था। संपूर्णानंद की राजनीतिक सफर सत्याग्रह आंदोलनों से शुरू हुआ। इसके बाद पह राजनीति में आए। 1926 में कांग्रेस ने पहली बार उन्हें प्रत्याशी बनाया और वह निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे। 1937 में कांग्रेस मंत्रि मंडल में तात्कालिक शिक्षा मंत्री प्यारेलाल शर्मा के त्यागपत्र के बाद संपूर्णानंद को प्रदेश का शिक्षा मंत्री बनाया गया।
यह भी पढ़े : कहानी यूपी के उस सीएम की जो कहता था मैं चोर हूं… गोविंद बल्लभ पंत के बाद संभाली कमान 1954 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यूपी के तत्कालिक मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को जब केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कमान संपूर्णानंद के हाथों में सौंपी गयी। वह 1962 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहे। बाद में इन्हें राजस्थान के राज्यपाल पद की जिम्मेदारी दी गई। राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर 1967 में इनका कार्यकाल समाप्त हुआ। इसके दो साल बाद 10 जनवरी 1969 को ईमानदार और शानदार शख्सियत ने साथ इस संसार को छोड़ दिया।
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यूपी का वह सीएम जो सिर्फ एक दिन के लिए ही बैठा गद्दी पर कभी वोट मांगने नहीं गए संपूर्णानंद को भले ही एक राजनेता के तौर पर जाना जाता हो लेकिन वह राजनेता के साथ-साथ चिंतक, साहित्यकार, शिक्षक, ज्योतिषविद, तंत्र साधक व संपादक भी थे। इन सब से ऊपर उठकर संपूर्णानंद एक ईमानदार राष्ट्र भक्त थे। योग दर्शन में संपूर्णानंद काफी रुचि थी। उत्तर प्रदेश में ओपन जेल और नैनीताल में वैधशाला बनवाने का श्रेय भी संपूर्णानंद को ही जाता है। हिंदी भाषा को लेकर संपूर्णानंद काफी भावुक थे। उन्होंने लंबे समय तक ‘मर्यादा’ मैगजीन का संपादन किया। जब उन्होंने संपादन छोड़ा तो फिर संपादन प्रेमचंद ने किया। संपूर्णानंद के लिए कहा जाता है कि वह कभी वोट मांगने के लिए जनता के बीच में नहीं जाते थे। इन्होंने गांधीजी की पहली जीवनी ‘कर्मवीर’ लिखी। सबसे पहला वैज्ञानिक उपन्यास लिखने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है।