सोनिया को टक्कर देने के लिए सीखी थी कन्नड़ दरअसल, 1999 के लोकसभा चुनाव के साथ ही सुषमा स्वराज और सोनिया गांधी के बीच अदावत की शुरुआत हो चुकी थी। तब सुषमा स्वराज ने कर्नाटक की बेल्लारी सीट से यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। बेल्लारी सीट कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। सोनिया गांधी की चुनावी मुहिम के लिए वह उस वक्त कांग्रेस की सबसे महत्वपूर्ण सीटों में से एक थी। यह वह दौर था जब सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के मुद्दे भी काफी मुखर थे। वहीं, बीजेपी ने इस सीट से सुषमा स्वराज को सोनिया गांधी को टक्कर देने के लिए उतारा था। हालांकि, बीजेपी की पकड़ कर्नाटक में अच्छी नहीं थी। खास तब है कि इस चुनौती को स्वीकार करते हुए सुषमा स्वराज ने कर्नाटक के लोगों से संवाद करने के लिए 15 दिन में कन्नड़ भाषा सीखी थी। भले ही इस चुनाव में उन्हें जीन न मिली हो लेकिन कन्नड़ में अपनी बात रखकर उन्होंने बेल्लारी के लोगों का दिल जीत लिया था। सुषमा स्वराज, सोनिया गांधी से मात्र सात फीसदी वोटों के अंतर से हारी थीं।
सोनिया के पीएम बनने की चर्चा के बीच सुषमा स्वराज ने की थी पद त्यागने की बात कर्नाटक के बेल्लारी से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सोनिया संसद पहुंच गई थीं। इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में जब यूपीए सरकार ने केंद्र में सरकार बनाने का दावा किया, तब सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री चेहरा घोषित किया गया था। कांग्रेस ने सोनिया गांधी को पीएम बनाने का ऐलान किया था। कांग्रेस के इस ऐलान से सुषमा स्वराज इतना बिफर गई थीं कि उन्होंने अपने पद को त्यागने तक की बात कर दी थी। सुषमा स्वराज ने कहा था कि अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं, तो अपने पद को त्यागने के साथ ही अपने बाल कटवा लूंगी और पूरा जीवन भिक्षुक की तरह बिताउंगी। रंगीन वस्त्र छोड़कर सफेद कपड़े पहनूंगी। जमीन पर सोऊंगी और भुने चने खाऊंगी। सुषमा का यह बयान सुनकर सभी हैरान में थे, क्योंकि उनके इस तरह के बयान की कल्पना किसी ने नहीं की थी।
हालांकि, बाद में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया और उनकी जगह मनमोहन सिंह को देश का नया प्रधानमंत्री मिला था। 16 अप्रैल, 2000 में सुषमा स्वराज उत्तर प्रदेश के राज्यसभा के सदस्य के रूप में संसद में वापस लौट गईं।