बुंदेलखंड में भूसे की उपलब्धता न होने से पशुपालक परेशान हैं। साल 2021 में इस वक्त भूसा 400-500 रुपया कुंतल आसानी से मिल जाता था। पर इस साल 2022 में इस वक्त भूसा करीब तीन गुना दाम पर मिल रहा है। यानि इस वक्त बाजार में भूसा 1500 रुपया कुंतल है। और ढूढने से भी नही मिल पा रहा है। अचानक से तीन गुना से ज्यादा महंगा हो जाने से पशु पालक परेशान हो गए हैं।
भूसे के महंगे होने की वजह बताते हुए हमीरपुर जिले के किसान नेता संतोष सिंह ने कहाकि, इस साल किसानों ने मटर और लाही की फसलों को ज्यादा बोया था। जिस वजह से गेहूं का भूसा नहीं बन पाया। एक और किसान रामपाल सिंह ने अपना दर्द शेयर करते हुए कहाकि, एक तो गेहूं कम बोया और उस पर किसानों ने गेहूं की फसल को हार्वेस्टर से कटवा दिया। जिससे भूसा नही बन सका है। पिछले साल जब किसानों ने मटर बोया था तो मटर दस हजार रुपया कुंतल की कीमत पर बिका था। इस लालच में किसानों ने मटर को बड़ी तादाद में बोया। अधिक मटर की पैदावार होने से बाजार में मटर की कीमत बहुत कम हो गई। उपर से भूसा बन नहीं सका। अब पशुपालक परेशान है।
किसानों के अधिक मुनाफा लेने की सजा अब पशुपालकों भोग रहे हैं। भूसे की कमी और महंगी कीमतों के चलते सिर्फ हमीरपुर जिला ही नहीं बल्कि पूरे बुंदेलखंड के सभी सातों जिलों महोबा, बांदा, चित्रकूट,जालौन, झांसी और ललितपुर में भी समस्या देखने को मिल रही है। इसके साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के पशुपालक भी इस समस्या से रुबरू हो रहे हैं।
हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे के पशुपालक रामपाल ने बताया कि, उनके पास दो भैंसे हैं। अब जब भूसे की कीमतें आसमान छू रही हैं और तीन गुनी कीमत में भी भूसा ढूंढे नही मिल रहा है तो ऐसे में उन्हें दूध का रेट बढ़ाना पड़ेगा या फिर अपनी दोनों भैसों को बेचना पड़ेगा। अभी तक हमीरपुर जिले में भैस का शुद्ध दूध 50—55 रुपए प्रति लीटर मिलता है। पर अब भूसे की किल्लत के कारण भैंस का दूध 80 रुपया प्रति लीटर महंगा होने की संभावना है।
देश में कुल पशुओं की संख्या करीब 53.58 करोड़ है। 20वीं पशुगणना के अनुसार, देश में सबसे ज्यादा संख्या गोवंश और फिर भैंसों की है। इस तरह गौ और महिषवंशीय पशुओं की कुल संख्या करीब 30.23 करोड़ है। इन दोनों खाना हरा चारा और भूसा हैं। भूसे को लंबे समय तक भंडारित किया जा सकता है। यूपी में संख्या 1.88 करोड़ है।
खाद्य विभाग सचिव सुधांशु पांडे ने बताया था कि, कृषि मंत्रालय ने संसोधित अनुमान में वर्ष 2021—22 में गेहूं उत्पादन 10.5 करोड़ टन किया है। यूपी पशुपालन विभाग उपनिदेशक डॉ. वीके सिंह ने बताया कि, मशीनीकरण चारा कम होने का सबसे बड़ा कारण है। कंबाइन से गेहूं कटाने पर भूसा कम बनता हैं। इसके अतिरिक्त कई बार किसान खेत जला देता है। घटती जोत के चलते किसान अब अनाज या फल-सब्जी उगाने को प्राथमिकता देता है। और जो पशुचारागाह हैं उन पर कई जगह कब्जे हो गए हैं।
आईवीआरआई के क्षेत्रीय केंद्र पालमपुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ पुतान सिंह कहते हैं, चारा संकट से निपटने के लिए पहले तो सरकार भूसे का व्यवसायिक इस्तेमाल पर पूर्ण बैन लगाए। दूसरा चीनी मिल भूसे, शीरे और खोई को मिलकर संगठित चारा बिक्र बना सकते हैं जो न सिर्फ उपयोगी और पोषण देने वाला होगा बल्कि चीनी मिलों को पूरे साल काम और पशुपालकों को अच्छा और किफायती चारा मिलेगा।
उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए सरकार गोवंश आश्रय स्थल और गोशालाएं बनवा रही है। और उनके खाने के लिए यूपी सरकार एक पशु के हिसाब से 30 रुपए देती है। उपनिदेशक डॉ. वीके सिंह ने बताया कि, मौजूदा वक्त में भूसे की किल्लत को देखते हुए विभाग सक्रिय है, खासकर निराक्षित गोवंश के लिए रणनीति तैयार की गई है। जिलाधिकारी और सहयोगी विभागों ने मिलकर टेंडर निकाले हैं। बहुत सारे लोग भूसा दान भी कर रहे हैं।