उसे जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो। वैसे भी दो युद्धों में उसे भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था और किसी तरह फतेहपुर सिकरी के युद्ध से जान बचाकर भागा था। इसके बाद राणा सांगा के साथ युद्ध में भले ही विजय मिली हो लेकिन मीर बांकी ने अपने कई रिश्तेदारों को इस जंग में खो दिया था और खुद भी बुरी तरह घायल हुआ था। उसे अपना गुस्सा निकालने का अच्छा अवसर मिल गया था। उसने अपने सैनिकों को तत्काल आदेश दिया कि मंदिर पर धावा बोल दो।
बाबा श्यामानंद ने मंदिर के विग्रह को सरयू जी में छिपाया
मीर बांकी के आदेश के बाद बाबर के सैनिकों ने राममंदिर पर हमला बोल दिया। चारों तरफ हाहाकार मच गया और योगी-संयासी, यति, ब्राम्हण, पुजारी और भक्तों का बलिदान का सिलसिला शुरू हो गया। पूरी अयोध्या हिंदूओं के खून से लाल हो गई। इधर बाबा श्यामानंद अपने मुस्लिम शिष्यों के षडयंत्र को समझ नहीं पाए थे और अब उनके पास पछतावा के सिवा कुछ नहीं बचा था। वह मंदिर के विग्रह को भंग होने से बचाने के लिए सरयू जी में डाल आए और मुख्य विग्रह को लेकर उत्तराखंड की ओर चले गए।
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बाबा श्यामानंद ने मंदिर के विग्रह को सरयू जी में छिपाया
मीर बांकी के आदेश के बाद बाबर के सैनिकों ने राममंदिर पर हमला बोल दिया। चारों तरफ हाहाकार मच गया और योगी-संयासी, यति, ब्राम्हण, पुजारी और भक्तों का बलिदान का सिलसिला शुरू हो गया। पूरी अयोध्या हिंदूओं के खून से लाल हो गई। इधर बाबा श्यामानंद अपने मुस्लिम शिष्यों के षडयंत्र को समझ नहीं पाए थे और अब उनके पास पछतावा के सिवा कुछ नहीं बचा था। वह मंदिर के विग्रह को भंग होने से बचाने के लिए सरयू जी में डाल आए और मुख्य विग्रह को लेकर उत्तराखंड की ओर चले गए।
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उस समय मंदिर में चार पुजारी और पार्षद मौजूद थे, जो खड़े हो गए और कहा हमारी मौत के बाद ही कोई अंदर घुसेगा। तब फकीर जलालशाह ने आदेश दिया कि इनके सिर धड़ से अलग कर दिया जाए जिसे मीर बांकी ने तत्काल पालन करते हुए उनको मौत की नींद सुला दिया। पुजारियों और हिंदू भक्तों की लाशें चील कौओं को खाने के लिए बाहर फेंक दी गई और मुख्य मंदिर को लगातार तोड़ते हुए भूमिसात कर दिया गया।मंदिर के मलबे से तामीर होने लगी मस्जिद
अब इसके बाद उसी मंदिर की सामग्री से मस्जिद का निर्माण शुरू किया गया। जिस मंदिर को तोड़ा गया वह तत्कालीन समय में विश्व का सबसे सुंदर और भव्य मंदिर था, जिसमें सात कलश और एक सर्वोच्च शिखर था। बताया जाता है कि आज के मनकापुर से श्रीराम जन्मस्थान का मंदिर दिखाई पड़ता था।
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कहा जाता है कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ चार मंदिरों में उस समय पहले नंबर पर अयोध्या का श्रीराम मंदिर हुआ करता था जिसे बाबर ने तोड़ डाला। इस मंदिर में एक शिखर और सात कलश थे जो आज के मनकापुर से देखे जा सकते थे। इधर बाबर की आतताई सेना ने मंदिर तोड़ना शुरू किया उधर बात जंगल की आग की तरह फैल गई। हिंदुओं के प्रतिकार और बलिदान पर आगे के अंक में हम चर्चा करेंगे। विक्रमादित्य के बनाए हुए भव्य मंदिर को बाबरी सेना तोड़ रही थी और उसकी के मशाले से नई मस्जिद तामीर भी होने लगी।
ब्रिटीश इतिहासकार वेंता कनिंघम लखनऊ गजेटियर 26 वें के पेज तीन पर लिखते हैं कि “श्रीराम जन्मभूमि पर स्थित मंदिर को बाबर के वजीर मीर बांकी द्वार गिराए जाने के अवसर पर हिंदू शांत नहीं बैठै और अनगिनत बलिदानों का सिलसिला चल पड़ा। यहां तक कि श्रीराम की बलिवेदी पर सर कटवाने की होड़ लग गई लेकिन इस दौरान मुगल सेना को भारी धन-जन की हानि उठानी पड़ी। कई बार तो ऐसा लगा जैसे मुगल सेना के हौसले पस्त हो जाएंगे और वे मंदिर विध्वंस को बीच में ही छोडक़र वापस चले जाएंगे।”
आगे के अंक में हम बताएंगे कि मीर बांकी की सेना को किस प्रकार नाको चने चबाने पड़े और श्रीराम मंदिर विध्वंस की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई। जिसके बाद हिंदुओं ने किस प्रकार प्रतिकार किया…