अन्य पिछड़ा वर्ग में यादव के अलावा जो जातियां हैं उनका वोट भी गठबंधन को नहीं मिला। इसमें कुर्मी और निषाद जैसी जातियोंं के वोट भाजपा की तरफ शिफ्ट हो गए। दलितों में जाटव के अलावा पासी समाज का वोट गठबंधन को नहीं पड़ा। इसी तरह गठबंधन को उसके कोर वोटरों का लाभ तो मिला लेकिन वह सीटों में कनवर्ट नहीं हो पाया। बसपा के बेस वोट दलित-मुसलमान और समाजवादी पार्टी के बेस वोट यादव समाज-जाटव-मुसलमान दोनों असमंजस में रहे। इसलिए इनका कम से कम 40 प्रतिशत वोट भाजपा के पक्ष में चला गया। अन्य पिछड़ी जातियों में यादव के अलावा जो जातियां हैं उनका वोट भी बिखर गया। उदाहरण के लिए कानपुर देहात और पूर्वी-पश्चिमी इलाके में कोईरी समाज के मतदाता काफी तादाद में हैं और यह सब एकजुट होकर भाजपा के साथ चले गए। इसलिए गठबंधन तमाम सीटें जीतते-जीतते हार गया।
माया और अखिलेश के लिए मंथन का वक्त
गठबंधन की बुरी तरह से हार के बाद सपा और बसपा दोनों में चिंतन शुरू हो गया है। सपा और बसपा कार्यालयों में दिनभर सन्नाटा रहा। लेकिन बंद कमरों में दोनों दलों के नेता आत्मचिंतन करते रहे। दोपहर बाद सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव सपा मुख्यालय पहुंचे और कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों से मुलाकात की। लेकिन उस वक्त उन्हें कार्यकर्ताओं की खरी-खरी सुननी पड़ी। ऐसे में गठबंधन के लिए यह चुनौती है कि हार के कारणों की समीक्षा करें। आने वाले समय में उप्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। तब क्या सपा-बसपा की जोड़ी बनी रहेगी इसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।