लखनऊ

श्रीराम जन्मभूमि को लेकर पहला मुकदमा जब महंत रघुवर दास ने किया दावा

Ram Mandir Katha: ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ जैसी मुगलकालीन न्याय व्यवस्था से अब छुटकारा मिलने लगा था। देश में आधुनिक न्याय व्यवस्था की प्रारंभिक शुरुआत हो चुकी थी। फैजाबाद के जिला जज की अदालत में 25 मई 1885 को मामला पहुंचा और कानूनी लड़ाई का सूत्रपात हो गया…।
 
 

लखनऊOct 12, 2023 / 08:02 am

Markandey Pandey

महंत रघुवर दास ने चबूतरे के निर्माण और उसके मालिकाना हक का दावा करते हुए फैजाबाद के उपन्यायधीश की अदालत में 25 मई 1985 को मुकदमा दायर कर दिया।

1857 के विद्रोह की आग में देश जल ही रहा था…। दूसरी तरफ अयोध्या में जन्मभूमि को लेकर हिंदु मुस्लिम के झगड़े बढ़ते जा रहे थे। इससे तंग आए अंग्रेजी शासन ने विवादित स्थल को तारों के बाड़े से घेर दिया। हिंदु मुस्लिम दोनों को पूजा और नमाज की इजाजत दे दी गई। इससे माहौल कुछ शांत होता दिखा लेकिन यह अधिक दिनों तक नहीं चल सका।
19 जनवरी 1885 तक का समय ऐसे ही गुजरता रहा तभी बाबरी ढांचे के पास एक ऊंचा मंच बनाया गया। यह मंच हिंदुओं ने बनाया था जिसे लेकर मुस्लिम पक्ष ने फैजाबाद जिला मजिस्टे्रट के यहां विरोध दर्ज कराया। मंच और बाबरी ढांचे को अलग करने के लिए एक दीवार बनाई गई थी।


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इसी मंच पर निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवर दास ने मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया। जिसे मुस्लिम पक्ष की आपत्ति के बाद जिला मजिस्टे्रट ने रुकवा दिया। इसके बाद महंत रघुवर दास ने चबूतरे के निर्माण और उसके मालिकाना हक का दावा करते हुए फैजाबाद के उपन्यायधीश की अदालत में 25 मई 1885 को मुकदमा दायर कर दिया। हांलाकि उप न्यायधीश और जिला न्यायधीश ने अनुमति देने से इंकार कर दिया। लेकिन महंत रघुवर दास शांत नहीं बैठे। उन्होंने फिर से न्यायायिक आयुक्त अवध की अदालत में मामला दायर कर दिया। न्यायायिक आयुक्त ने यथास्थिति में किसी भी बदलाव से इंकार कर दिया और साल 1934 तक इस मामले पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया।

हिंदुओं की भूमि पर मस्जिद बनाई गई यह दुर्भाग्यपूर्ण है
18 मार्च 1986 को फैजाबाद के जिला जज कर्नल एफईए शेमियर ने श्रीराम जन्म भूमि का खुद ही निरीक्षण किया और अपील को खारिज करते हुए कहा था कि हिंदुओं के पवित्र भूमि पर मस्जिद बनाई गई है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। 1912 और साल 1934 में साधुओं ने और हिंदू जनता ने मिलकर बाबरी ढांचे पर धावा बोल दिया और तोड़-फोड़ शुरू कर दिया। इसके बाद जन्म भूमि एक तरह से हिंदुओं के कब्जे में आ गई, लेकिन अधिक दिनों के लिए नहीं। अंग्रेज सरकार ने कब्जा छुड़वाकर तोड़-फोड़ की मरम्मत कराई।
https://youtu.be/RcXZkFpS5Us

महंत रघुवर दास का मामला बना नजीर
अदालती कार्यवाहियों में यह बात मजबूत आधार बना कि 1885 में महंत रघुवर दास ने फैजाबाद के सब जज कोर्ट में केस किया था। जिसमें मस्जिद परिसर के भीतर मौजूद 17 गुणे 21 फीट के चबूतरे पर मंदिर बनाने की अनुमति मांगी थी। यह वह जगह थी जहां भगवान श्रीराम की चरण पादुका लगाई गई थी जिसकी नियमित पूजा की जाती रही है।

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दीवानी मुकदमों में फैजाबाद की जिला अदालत ने 1886 में कहा कि मस्जिद अयोध्या में हिंदुओं द्वारा पवित्र मानी जाने वाली जमीन पर बनाई गई थी। हांलाकि उसमें मंदिर निर्माण की अनुमति नहीं थी। जमीन के मालिकाना हक का समाधान निकालने का मुस्लिम पक्ष का दावा गलत है। ऐसा हिंदु पक्ष जोर देकर कहता रहा है।
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मुस्लिम सहमत नहीं थे
मुसलमान हिंदुओं के इस बात से कत्तई सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा था कि 1885 के मुकदमे को जमीन के मालिकाना हक के समाधान के तौर पर स्वीकृत नहीं दी जा सकती क्योंकि यह केवल भूमि के एक हिस्से बाहरी भाग पर चबूतरे को लेकर था। बाद के दावों में पूरे विवादित स्थान को शामिल किया गया।
… इसलिए दावे का कोई आधार नहीं रह जाता। मामला हाईकोर्ट पहुंचा। पूरे केस की सुनवाई के और छानबीन के बाद यह स्थिति सामने आई कि- 1885 में महंत रघुवर दास ने राम चबूतरा इलाके में मंदिर के निर्माण के लिए याचिका दायर किया था। बाकी मस्जिद के मुअज्जिन मोहम्मद अशगर ने इसका विरोध किया। उन्होंने भूमि के सीमांकन में मात्र कुछ बातों का विरोध किया था और पर्याप्त आपत्तियां नहीं उठाई थी।


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इसलिए मुकदमा खारिज कर दिया गया। उक्त तथ्यों के लिए राम की अयोध्या पुस्तक के लेखक सुदर्शन भाटिया का हम आभार प्रगट करते हैं। कारसेवा से कारसेवा पुस्तक के लेखक वरिष्ठ पत्रकार गोपाल शर्मा लिखते हैं कि 1885 में सिविल अपील संख्या 27 पर फैसला देते हुए जिला न्यायाधीश एफ ई ए शेमियर ने लिखा कि यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि ऐसे किसी स्थान पर मस्जिद बनाई गई जिसे हिंदू पवित्र मानते हैं। 365 साल पहले घटी घटना की शिकायत इतनी देर हो जाने के बाद दूर नहीं की जा सकती।

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