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लखनऊ

क्यों नहीं हो रहा अखिलेश और शिवपाल में समझौता, 5 बड़ी वजहें आईं सामने

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी अखिलेश यादव व चाचा शिवपाल सिंह यादव समझौते के लिए तैयार नहीं हैं|

लखनऊJun 15, 2019 / 07:50 pm

Abhishek Gupta

Mulayam Akhilesh

Mulayam Akhilesh

लखनऊ. लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी अखिलेश यादव व चाचा शिवपाल सिंह यादव समझौते के लिए तैयार नहीं हैं| शिवपाल यादव चुनाव हारने के बाद भी निराश नहीं हैं| वह आगामी उपचुनाव पर 2022 के चुनाव से पहले पार्टी संगठन को मजबूत करने में जुट गए है। लगातार हो रही बैठकों में शिवपाल अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को खुश रहने व कड़ी मेहनत करने के निर्देश दे रहे हैं| शिवपाल फिरोजाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद तीसरे स्थान पर रहे वहीं बाकी सभी प्रत्याशियों की ज़मानत ज़ब्त हो गई| बावजूद इसके वो 2022 विधानसभा में अकेले दम पर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं| शिवपाल यादव का मानना है कि चुनाव में हमारा प्रदर्शन सैकड़ो वर्ष पुरानी कांग्रेस से भी अच्छा रहा है| जबकि हमने तो चुनाव से कुछ ही महीने पहले पार्टी की नींव रखी है। वहीं अखिलेश से समझौते से वह साफ इंकार करने के संकेत दे चुके हैं। तो अखिलेश भी इसके पक्ष में नहीं दिखते।
शिवपाल को सपा में वही सम्मान न मिलने का डर-

शिवपाल यदव अब अपने भतीजे अखिलेश यादव से समझौता करने के मूड में नहीं है। इस बात को वह हाल में हुई एक प्रेस वार्ता में भी दोहरा चुके हैं। हालांकि उन्होंने गठबंधन के दरवाजे खोल रखे हैं। वैसे कई और कारण है जिससे यह दोनों दिग्गज कभी भी साथ नहीं आ सकते। मुलायम सिंह यादव जब समाजवादी पार्टी के मुखिया थे, उस समय पार्टी में शिवपाल यादव नंबर दो की हैसियत रखते थे, लेकिन समाजवादी पार्टी की कमान जब से अखिलेश यादव के हाथों में आई है तब से शिवपाल खुद को उपेक्षित समझने लगे हैं| शिवपाल यादव का मानना है कि मुलायम के नेत्रत्व में सपा में जो सम्मान उन्हें मिला करता था, वह अब अखिलेश की कमान में उन्हें नहीं मिलेगा|
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लोकसभा चुनाव के बाद सपा में दिख रही आत्मविश्वास की कमी-
शिवपाल यादव का मानना है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी अब हाशिये पर चली गई है और उसमें आत्मविश्वास की कमी है। इसी डर से लोकसभा चुनाव में सपा ने बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती से हाथ मिला लिया| लेकिन जब नतीजे आए तो बसपा शुन्य से 10 सीटों तक पहुंच गई वहीं सपा पिछले आम चुनाव की तरह केवल 5 सीटों पर ही सिमट कर रह गई। सपा अपनी पारिवारिक सीटें जैस कन्नौज, फिरोजाबाद और बदायूं को भी नहीं बचा पाई। ऐसी स्थिति में शिवपाल यादव अपनी पार्टी के एजेंडे को सपा के वोटरों के बीच भुनाने में क़ामयाब हो सकते हैं। और एक बड़ी पार्टी बनकर उभर सकते हैं|
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अखिलेश से ज्यादा हैं अनुभवी शिवपाल-
समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव काफी समय से अस्वस्थ चल रहे हैं। यह देख शिवपाल का अनुमान है कि अखिलेश यादव का उत्तर प्रदेश की राजनीतिक ज़मीन पर टिक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है| इसका कारण राजनीति के क्षेत्र में अखिलेश का शिवपाल यादव से कम अनुभव होना भी बताया जा रहा है। शिवपाल अपनी पूरी राजनीतिक क्षमता से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया को आगे ले जाएंगे जैसा कि वह दावा कर रहे हैं|
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वोट बैंक पर पड़ सकता है असर-
उत्तर प्रदेश में शिवपाल यादव का एक अपना वोट बैंक है| जिसके दम पर उन्होंने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया बनाने का फैसला लिया था| शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी में इसलिए भी नहीं आ सकते क्योंकि अब बात उनके आत्मसम्मान की है| अगर वो अखिलेश यादव के सामने झुकते है, तो लाखों कार्यकर्ता जिस भरोसे से उनके साथ आए वह टूट जाएगा। यहीं नहीं, उनका राजनीतिक करियर भी दांव पर लग सकता है| इससे उनके अपने व्यक्तिगत वोट बैंक पर भी असर पड़ेगा|
अखिलेश और शिवपाल के बीच तनातनी को दौर पर एक नज़र डाले तो उसमें एक बात साफ हो जाती है कि दोनो ही झुकने वालों में से नहीं हैं| अखिलेश यादव और शिवपाल दोनों ही अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं करते | और शायद इसी कारण दोनों का साथ आना मुश्किल है। वहीं अखिलेश के नजरिए से देखें तो मुख्यमंत्री बनने के बाद समाजवादी पार्टी पर उनका एकाधिकार हो गया है और यही कारण है कि शिवपाल समाजवादी पार्टी से अलग हो गए हैं| यदि शिवपाल सपा में आ जाते हैं तो अखिलेश की पार्टी में पकड़ कहीं न कहीं कमजोर पड़ सकती है।
पांच साल सूबे के मुख्यमंत्री रहने के दौरान अखिलेश यादव ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है| खास तौर से युवा वर्ग में उनका एक अलग महत्व है| भाजपा की सरकार के दौरान हुए उपचुनावों में भी सपा ने जीत हासिल की, जिससे अखिलेश के फैसले लेने की क्षमता पर नेताओं व कार्यकताओं को उनपर विश्वास है। आगामी विधानसभा उपचुनाव व 2022 चुनाव में वे बिना किसी के सहयोग के लड़ना चाहते हैं| शिवपाल के साथ चुनाव लड़ने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती।

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