सैंगोल शब्द संस्कृत भाषा के शंकु से लिया गया है। इसका मतलब शंख होता है। अगर हम तमिल भाषा की बात करें तो सैंगोल तमिल भाषा के शब्द सेम्मई से लिया गया है। इसका अर्थ है कि धर्म, सच्चाई और निष्ठा। सैंगोल एक आकृति है जिसके सबसे ऊपर नंदी है और बगल में कलाकृति बनी है। यह पांच फीट लंबा है और इसे तमिलनाडू के एक प्रमुख धार्मिक मठ के पुरोहितों का आर्शीवाद प्राप्त है। यह सोने और चांदी का बना है और सबसे पहले मौर्य साम्राज्य 322-185 ईसा पूर्व इसका उपयोग सत्ता परिवर्तन में किया गया था।
चोल साम्राज्य के दौरान राजाओं के राज्याभिषेक में प्रयोग किया जाता था। यह एक भाले या ध्वज दंड के रुप में कार्य करता था जिसे न्याय दंड, धर्मदंड या राजदंड भी कहा जाता था, जिसमें चोल साम्राज्य के बेहतरीन वास्तु कला के अनुसार ही नक्काशी है। सैंगोल को एक राजा दूसरे व्यक्ति को जब राजगद्दी सौंपता तो सैंगोल को भी देता। यह सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है। यह संप्रभुता का भी प्रतीक है जिसे चोल साम्राज्य के दौरान प्रयोग किया जाता था। उल्लेखनीय है कि दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वास्तुकला में चोल साम्राज्य बेजोड़ रहा है।
ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक तमिल परंपरा में राज्य के महायाजक अर्थात राजगुरु नए राजा के सत्ता ग्रहण करने पर सैंगोल देता है। यह थिरुवदुथुरै अधीनम मठ का होता है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 14 अगस्त 1947 को सैंगोल को थिरुवदुथुरै मठ के राजगुरु ने इसे लार्ड माउंटबैटन को सौंपा था। जिसे बाकायदा पूजा-पाठ के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को सौंप दिया गया।