भाकियू के नए अध्यक्ष राजेश सिंह चौहान ने दावा किया है कि हम किसी राजनैतिक दल से नहीं जुड़ेगे. हम किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत के मार्ग पर चलेंगे चलने वाले हैं और हम अपने सिद्धांतों को विपरीत नहीं जाएंगे. मीडिया से बात करते हुए राजेश सिंह चौहान ने कहा कि बीकेयू (अराजनैतिक) का अध्यक्ष हूं. हम 13 दिन आंदोलन के बीच रहे. आंदोलन के दौरान मैंने चंदे का रुपया नहीं छुआ. हमारा काम किसान को सम्मान दिलाना है. राजेश सिंह चौहान यूपी के फतेहपुर जिले के रहने वाले हैं और भाकियू के गठन से उसके साथ हैं. उनका कहना है कि हम अब नए सिरे से संगठन को तैयार करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि देश के किसान नेता राकेश तथा नरेश टिकैत के हर कदम से बेहद नाराज हैं. हमने तो हर मंच पर किसानों की समस्याओं को उठाने का संकल्प लिया है. लेकिन किसानों के हित की बात करने की जगह नरेश टिकैत तथा राकेश टिकैत कुछ चाटुकारों के बीच फंसे हैं.
किसान आन्दोलन के बाद से भाकियू नेताओं में शुरू हुई अनबन किसान आन्दोलन के बाद से भाकियू नेताओं में शुरू हुई अनबन ने रविवार को दो अलग -अलग रास्ते चुन लिए हैं. हालांकि भाकियू में बढ़ते असंतोष का संज्ञान लेते हुए ही असंतुष्ट किसान नेताओं को मनाने के लिए भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत शुक्रवार को ही लखनऊ पहुंच गए थे. शुक्रवार देर रात तक असंतुष्ट गुट से उनकी समझौता वार्ता होती रही, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला. इसके बाद शनिवार शाम टिकैत लखनऊ से मुजफ्फरनगर के लिए वापस लौट गए. ऐसे में रविवार को कार्यकरिणी की बैठक में राजेश सिंह चौहान को भाकियू (अराजनैतिक) का नया अध्यक्ष बनाया गया.
मेरठ में भी लगा आरोप किसान यूनियन में मेरठ के राजपाल त्यागी ने राकेश टिकैत पर आरोप लगाये हैं. उनका कहना है कि राकेश टिकैत के नेतृत्व में संगठन बाबा टिकैत के आदर्शों से भटक गया था. बिजली, खाद, पानी के मुद्दों पर संघर्ष की बजाय ईवीएम की रक्षा करने में लग गया है, जो किसान संगठन का काम नहीं है. भाकियू अराजनीतिक था, उसे अराजनीतिक ही रहना चाहिए. राकेश टिकैत अब राजनीतिक होने लगे थे इसलिए उन्हें संगठन से बाहर करना जरूरी हो गया था.
35 साल पहले बना था भाकियू
1 मार्च 1987 को महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के मुददे को लेकर भाकियू का गठन किया था. इसी दिन करमूखेड़ी बिजलीघर पर पहला धरना शुरू किया. इस धरने के दौरान हिंसा हुई थी, तो किसान आंदोलन उग्र हो गया. पीएसी के सिपाही और एक किसान की गोली लगने से मौत हो गई.
धरने में फूंके थे पुलिस के वाहन पुलिस के वाहन फूंक दिए गए. बाद में बिना हल के धरना समाप्त करना पड़ा. 17 मार्च 1987 को भाकियू की पहली बैठक हुई, जिसमें निर्णय लिया कि भाकियू किसानों की लड़ाई लड़ेगी और हमेशा गैर-राजनीतिक रहेगी. इसके बाद से पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाकियू किसानों के मुद्दे उठाने लगी. आज इस भाकियू में दो फाड़ हो गई.