राजनीति में 25 साल पूरे होने पर 30 नवंबर को सूबे की राजधानी लखनऊ में राजा रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अपनी नई पार्टी का ऐलान करेंगे। मायावती को छोड़कर वह लगभग हर सरकार में मंत्री बनते रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि सपा-भाजपा के करीबी रहे राजा भैया को आखिर अपनी नई पार्टी बनाने की जरूरत क्यों महसूस हुई? राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अब राजा भैया के लिये पहले जैसे हालात नहीं रहे। राज्यसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी को वोट न देने से राजा भैया और अखिलेश के रिश्तों में बढ़ी तल्खी अब तक कायम है। बीजेपी में उन्हें भरपूर तरजीह मिलेगी, इसकी संभावना कम ही है। बसपा में उनके लिये जगह नहीं है, यह जग-जाहिर है। ऐसे में राजा भैया को नई राजनीतिक राह तलाशनी पड़ रही है।
सूबे की 5-6 फीसदी ठाकुर बिरादरी में अब राजा भैया की पहले जैसी पैठ नहीं रह गई है। वह सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खूद इसी बिरादरी से आते हैं। उन पर ठाकरवादी होने के आरोप लग रहे हैं। ऐसे में इस तबके का एक बड़ा वर्ग बीजेपी के साथ है। इसके अलावा केंद्रीय गृहमंत्री व लखनऊ से सांसद राजनाथ सिंह का भी ठाकुर बिरादरी पर प्रभाव है। इसके अलावा योगी मंत्रिमंडल में 6 मंत्री ठाकुर हैं, जो कहीं न कहीं बीजेपी के लिये बिरादरी का वोट लाएंगे।
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राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं राजा भैयाराजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजा भैया राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। वह जानते हैं कि अभी बीजेपी का विरोध करना उनके लिये मुफीद नहीं है। ऐसे में वह शिवपाल की तरह सपा-बसपा के नाराज लोगों को लामबंद कर सकते हैं। बाद में जरूरत पड़ने पर वह बीजेपी के साथ कोई समीकरण बना सकते हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नई पार्टी बनाने के लिए राजा भैया से ज्यादा उनके समर्थक उत्सुक हैं। मौजूदा हालतों में राजा भैया तो निर्दलीय चुनाव जीतने का माद्दा रखते हैं, लेकिन समर्थकों कहां एडजस्ट करेंगे, चिंता का सबब है। ऐसे में अपनी पार्टी बनाकर सभी को एडजस्ट करने की उनकी योजना है।