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लखनऊ

धृतराष्ट्र बने अधिकारी, नहीं निभा रहे अपनी ज़िम्मेदारी

बेखौफ होकर कब्जेदार अपनी दुकान चला रहे हैं और अधिकारी धृतराष्ट्र बने बैठे हैं।

लखनऊApr 09, 2016 / 09:33 pm

Dikshant Sharma

nagar nigam lucknow

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लखनऊ. नवावों के शहर के लिए इस वक्त अतिक्रमण सबसे बड़ी समस्या है। शहर में रोड किनारे लगी अवैध दुकाने जहां एक तरफ नियम कानूनों को ठेंगा दिखाती हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकार के विकास के दावों की पोल भी खोलती हैं। यूं तो उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम के तहत शहर में किसी भी सार्वजनिक स्थान पर लगने वाले अवैध अतिक्रमण या कब्जे को बिना किसी नोटिस के हटाने की पूरी जिम्मेदारी व अधिकार नगर निगम प्रशासन के पास है। फिर भी जिम्मेदार अपने कर्तव्य नहीं निभा पा रहे हैं। जिम्मेदारों के कार्यालयों से लेकर नगर निगम मुख्यालय के आस-पास ही अवैध कब्जेदार दिख सकते हैं। वह बेखौफ होकर अपनी दुकान चला रहे हैं और अधिकारी धृतराष्ट्र बने बैठे हैं। यही कारण है कि कभी अधिकारी संसाधनोंं की कमी का रोना रोते हैं तो कभी अधिकारों का। 

ऐसी ही एक जगह है पाॅलिटेक्निक चौराह जहाँ पर अवैध कब्जेदारों का बोल बाला है। चौराहे पर एक ओर अवैध कब्जेदार रोड को घेरे रहते हैं, तो दूसरी ओर गोरखपुर, बाराबंकी, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, बहराइच की ओर जाने वाली बसें व अन्य डग्गामार वाहन रोड को एक गली के रूप में परिवर्तित कर देते हैं। लेकिन इसके लिये जिम्मेदार कार्र्रवाई करने की बजाये अपनी जेब गर्म करने में लगे रहते हैं। वाहन चालक, अवैध कब्जेदारों से नगर निगम सहित स्थानिय थाना व ट्रैफिक पुलिस द्बारा की जाने वाली अवैध धन उगाही के चलते जिम्मेदार इस ओर कोई कार्रवाई नहीं करते, जिससे आम जनता को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

सूत्रों की मानें तो अभियान के दौरान पकड़े गये अवैध अतिक्रमणकारियों को रास्ते में ही पैसों का लेन-देन कर छोड़ दिया जाता है। बाकि से स्टोर पर डींलिंग की जाती है। इसके लिसे क्षेत्रीय निरीक्षक और जोनल अधिकारी से लेकर उच्चाधिकारियों तक हर किसी का अपना अपना परसेन्टेज फिक्स है। यही कारण है कि दबाव के चलते अभियान चलने के कुछ समय बाद ही अतिक्रमणकारी पुन: अपनी दुकानें लगा लेते हैं।

नो पर्किंग मेंं खड़े वाहनों से भी होती है, धन उगाई 
नियमों की अनदेखी कर बने काॅम्प्लेक्स और शोरूमों में जाने वाले ग्राहक अपनी गाड़ियों को नो पार्किंग में खड़ा कर के चले जाते हैं। कुछ सिपाही ऐसे वाहनों को नोटिस करने जाते भी हैं। लेकिन इसलिये नहीं क्योंकि वह कानून प्रिय कर्मचारी हैं, बल्कि इसलिये कि गाड़ी चालक से अवैध वसूली की जा सके। नो पार्किंग में खड़ी गाड़ियों को कब्जे में लेकर इन पर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी यातायात विभाग की होती है। इसके लिये विभाग नगर निगम की क्रेन की मदद से इन्हें उठवाता है और निर्धारित जुर्माना वसूलने के बाद ही छोड़ता है। लेकिन सूत्रों की मानें तो इन क्रेनों पर दिन भर में कई किलोमीटर पर फिल्ड में रनिंग दिखा कर सरकारी तेल तो खर्च किया जाता है, लेकिन गाड़ी नाम मात्र के लिये ही फिल्ड में जाती है। जबकि रनिंग के लिये मिलने वाला सारा ईंधन बेंच लिया जाता है।

अभी हाल ही में एसपी ट्रैफिक हबीबुल हसन ने इस पर अंकुश लगाने के लिये उठाई गई सभी गाड़ियों का ब्योरा व क्रेन की लोकेशन कान्ट्रोल को देने के आदेश किये थे, जिसकी चंद घंटों में ही हवा निकल गई थी। बहरहाल निगम अधिकारियों का कहना है कि दिन में लगभग 10 गाड़ियों को पाॅलिटेक्निक चौराह से उठाया जाता है। यहीं से नहीं शहर भर में निगम की गाड़ियां ट्रैफिक पुलिस की मदद के लिए दी गयी हैं। यदि इसके बाद भी ऐसा हो रहा है तो यह जांच का विषय है।

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