लखनऊ

महाकुंभ में मुलायम की मूर्ती और मिल्कीपुर उपचुनाव, कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन ! आखिर क्या करें अखिलेश ?  

मिल्कीपुर उपचुनाव और महाकुंभ के बीच फंसे अखिलेश की क्या है मनोदशा। फिर से क्यों इतने असमंजस में घिरे हैं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ? आइये सिलसिलेवार समझते है अखिलेश की दुविधा।

लखनऊJan 17, 2025 / 08:56 pm

ओम शर्मा

अखिलेश यादव

महाकुंभ, मुलायम और मिल्कीपुर। सपा प्रमुख अखिलेश यादव इन तीनों को लेकर असमंजस में नजर आ रहे हैं। अखिलेश कभी महाकुंभ के आयोजन पर सवालों के बौछार कर रहे हैं तो वहीं गंगा में डुबकी लगाने की तस्वीर साझा कर रहे हैं। कुंभ क्षेत्र में पहली बार समाजवादियों का भी टेंट लगा है जहां अखिलेश यादव के पिता की प्रतिमा भी लगी है लेकिन अखिलेश इससे भी अनजान बन रहे हैं। 

अखिलेश नहीं दे रहे हैं कोई प्रतिक्रिया 

न तो अखिलेश ने इसका जिक्र किया है और न ही कोई सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दी। यहां तक की यज्ञशाला में समाजवादियो के इस टेंट का उद्द्घाटन भी नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद ने किया। सवाल ये है कि क्या अखिलेश को इसकी जानकारी नहीं है ?  ऐसा किसी भी सूरत में संभव नहीं हो सकता है । फिर अखिलेश ने अभी तक इसका जिक्र क्यों नहीं किया ?  क्या पिता की मूर्ति कुंभ में लगने पर उन्हें गर्व नहीं है ?….दरअसल वजह कुछ और नहीं राजनीतिक है।  

क्या मिल्कीपुर चुनाव है कारण 

महाकुंभ के दौरान ही आयोध्या के मिल्कीपुर में उपचुनाव हो रहा है। 5 फरवरी को यहां मतदान होगा। जानकार मानते है कि अखिलेश कुंभ में जाते हैं तो उनकी हिंदू सनातनी छवी से मुस्लिम वोट बैंक पर असर पड़ सकता है। मिल्कीपुर के आंकड़े भी यही कहते हैं कि मुस्लिम और दलित बाहुल्य इस सीट पर भाजपा ने पासी समुदाय से आने वाले चन्द्रभान को टिकट देकर पहले ही अखिलेश का गणित बिगाड़ दिया है और ऐसे में अगर मुस्लिम वोट बैंक थोड़ा सा भी प्रभावित हुआ तो मिल्कीपुर से हाथ धोना पड़ सकता है। 
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राजनीति में कन्फ्यूज, क्या होगा बड़ा नुकसान ?   

ये पहला मौका नहीं है जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव असमंजस में है। इससे पहले पिछले साल राममंदिर के उद्घाटन समारोह से भी अखिलेश ने दूरी बना ली थी।  पिता मुलायम सिंह के रहते भी उन्होंने पुराने नेताओं का टिकट काट कर अलग मैसेज देने की कोशिश की लेकिन फिर से उन्हीं नेताओं को पार्टी में भी शामिल किया। विश्लेषक मानते है कि सियासत में कन्फ्यूज ठीक नहीं है।  किसी भी मुद्दे पर पार्टी और उसके नेताओं का स्टैंड क्लीयर होना चाहिए। 

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