कमोबेश इसी तरह की स्टडी जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग की भी है जिसमें साफ किया गया है कि मोबाइल गेम्स या मोबाइल नशे पर रोक-टोक से हर बार उत्तेजना बढ़ने से किशोरों और बच्चों के नजरिए में माता-पिता के प्रति बदलाव की भी रिपोर्ट सामने आ रही है। उर्सला और हैलट में हर हफ्ते 60 पैरेन्ट्स अपने बच्चों की मोबाइल गेम्स की शिकायत दूर करने के लिए पहुंच रहे हैं। इन्हीं में उर्सला और हैलट ने 100-100 बच्चों और किशोरों को स्टडी का हिस्सा बनाया है। राजकीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की यूनिट ने मनकक्ष तक खोल दिया है जिसमें डॉक्टर बकायदा उनकी काउंसिलिंग कर रहे हैं।
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Bank Update: यूपी में बंद रहेंगे इतने बैंक, फटाफट निपटा लें अपने जरूरी काम मोबाइल गेम्स से कैसे बचें बच्चों और पैरेन्ट्स मोबाइल को बंद रखकर बच्चे से संवाद करें। बच्चे की रूचि के हिसाब से उसे काम करने दें। मानसिक विकार को नजरअंदाज न करें, अपना व्यवहार को बदल लें।
बच्चे हो रहे आक्रामक डॉ.गणेश शंकर, मनोरोग विभाग सहायक प्रोफेसर के अनुसार मोबाइल गेम्स का नशा तेजी से बढ़ रहा है। बच्चों को समय से पहले मोबाइल गेम्स खेलने से आक्रामक सोच, चिड़चिड़ापन और अनिद्रा की बीमारी हो रहे हैं। पैरेन्ट्स हर रोज आ रहे हैं और बच्चे को नशे से बाहन निकालने की गुहार लगा रहे हैं। मोबाइल गेम्स का नशा अब ग्रुप गतिविधि के रूप में फैल रहा है। यह नशा परिवार से आइसोलेट करने लगा है। अब आक्रामक जटिल विकार 30 फीसदी तक हो गया है।