दरअसल बहुजन समाज पार्टी (BSP) का जनाधार लगातार खिसक रहा है। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तो उसे करीब 12 फीसदी वोट ही मिले थे। ऐसा माना जाता है कि जाटवों के अलावा किसी अन्य समाज का ज्यादा समर्थन बीएसपी को नहीं मिला था। इस तरह लगातार बसपा की ताकत कम हो रही है। और इससे बसपा के जीत की संभावनाएं भी बेहद कम हैं। ऐसे में मायावती और बसपा की कमजोर होती सियासी जमीन पर समाजवादी पार्टी के अलावा बीजेपी की भी नजर है। आमतौर पर मायावती और बसपा के जाटव वोटर सपा के खिलाफ रहे हैं। ऐसे में बीजेपी को लगता है कि उनके बीच पैठ बनाकर एक हिस्सा हासिल किया जा सकता है। यदि ऐसा हुआ तो बीजेपी की आगरा, सहारनपुर जैसे मंडलों में ताकत बढ़ जाएगी। जानकारी के लिए बता दें कि इन जिलों में दलितों की अच्छी आबादी है।
प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप के बाद लोकसभा चुनाव 2024 में SP-Congress फिर एक साथ
उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी तकरीबन 20 फीसदी है। यदि सवर्ण मतदाताओं और कई ओबीसी बिरादरियों के अलावा बीजेपी ने दलित वोटरों का भी गठजोड़ बना लेती है तो यह बड़ी बात होगी। अहम बात यह है कि बसपा इस बार सभी 80 सीटों लोकसभा सीटों पर अकेले ही उतरने जा रही है। बीएसपी के वोटबैंक को देखते हुए संभव नहीं है कि वह अकेले जीत हासिल कर सके। ऐसे में बीजेपी मायावती के मतदाताओं के बीच यह प्रचार करना चाहेगी कि यदि बसपा यह चुनाव नहीं जीत रही है। तो ऐसे में फिर दलित समाज के लोग बीजेपी का ही समर्थन कर दें। बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि बहुजन समाज पार्टी के अकेले लड़ने की स्थिति में दलित मतदाता बीजेपी की ओर रुख कर सकते हैं।
Weather: मौसम विभाग की नई भविष्यवाणी, वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से 24-27 फरवरी तक बारिश मचाएगी तबाही
इस बीच बीजेपी दलित समुदाय के बस्तियों तक संपर्क की तैयारी में हैं। इस लिए संत रविदास जयंती के मौके को चुना गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद शुक्रवार 23 फरवरी को रविदास जयंती (Ravidas Jayanti) के मौके पर वाराणसी में मौजूद थे। इसी दिन से बीजेपी के नेता और भाजपा कार्यकर्ता भी दलित बस्तियों का दौरा करेंगे। मार्च में बीजेपी दलित मोर्चे का एक आयोजन भी आगरा में करने वाली है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी इस आयोजन में रहेंगे। आगरा को पश्चिम यूपी में दलित मतदाताओं का सेंटर माना जाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा का पश्चिम यूपी में प्रदर्शन भी अच्छा था। और बसपा ने 10 सीटें भी हासिल की थीं। तब सपा और बसपा का गठबंधन था। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी का अकेले चुनावी मैदान में उतरने पर उसके लिए बड़ी चुनौती रहेगी।