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लखनऊ

सजा काट कर निकले विधानसभा से 6 पुलिसकर्मी, जानिए पूरा मामला

1 दिन के लिए विधान सभा की जेल में हुए थे बंद, 2004 में लाठीचार्ज के मामले पाए गए थे दोषी, शुक्रवार की रात 12 बजे तक मिली थी सजा

लखनऊMar 04, 2023 / 12:39 pm

Ritesh Singh

लम्बी चली थी सुनवाई, लेकिन नहीं मिली सजा

लम्बी चली थी सुनवाई, लेकिन नहीं मिली सजा

उत्तर प्रदेश विधानसभा में शुक्रवार को ऐतिहासिक कार्य हुआ था विधानसभा में ही अदालत लगाई गई। अदालत ने एक पुराने मामले में 6 पुलिसकर्मियों को एक दिन (आज रात 12 बजे तक) के कारावास की सजा सुनाई। समाजवादी पार्टी ने इसे गलत परंपरा करार दिया है, जबकि सत्तापक्ष ने इसे सही ठहराया है।
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विधानसभा में लगी अदालत में विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कानपुर के एक पुराने मामले में तत्कालीन आरोपी पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई। इस सजा में दोषी पुलिसकर्मियों को एक दिन का कारावास भुगतना होगा। सजा रात बारह बजे तक की है।

बीजेपी मंत्री ने सजा कम करने की मांग


विधानसभा में लगी अदालत में विधानसभा अध्यक्ष ने जब पुलिस कर्मियों को सजा सुना दी, तब कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने अदालत से सजा कम करने की मांग की। उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों को रात तक नहीं बल्कि कुछ घंटे ही कारावास में रखे जाएं, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने शाही की अपील को ठुकरा दिया और उनकी बात नहीं मानी। उन्होंने अपनी सजा बरकरार रखी। उन्होंने दोषी पुलिसकर्मियों को जेल भेज दिया। दोषी पुलिस कर्मियों को विशेष जेल में भोजन और पानी दिया जाएगा
ये थे पुलिसकर्मी जिनको मिली सजा

दोषी पुलिस कर्मचारियों में तत्कालीन क्षेत्राधिकारी (सीओ) अब्दुल समद, तत्कालीन थानाध्यक्ष ऋषिकांत शुक्ला, तत्कालीन उपनिरीक्षक त्रिलोकी सिंह, तत्कालीन कांस्टेबल छोटेलाल यादव, विनोद मिश्र और मेहरबान सिंह शामिल हैं।
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इन पर विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का आरोप था। जो विधानसभा में लगी विशेष अदालत में सिद्ध हो गया। इन्हें विधानसभा में लगी विशेष अदालत के कटघरे में खड़ा किया गया था। अदालत में बकायदा सुनवाई हुई उन्हें आरोप सुनाया गया। दोनों पक्षों ने अपनी बात रखी।
जानिए आखिर क्या था पूरा मामला

यह पूरा मामला साल 2004 का है। तब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। सपा सरकार में बिजली कटौती के मामले को लेकर सतीश महाना (तब विधायक थे और वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष हैं) कानपुर में धरने पर बैठे थे। उस समय पार्टी के कई विधायक और नेता उनके समर्थन में धरने में शामिल होने जा रहे थे।
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तब पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए लाठीचार्ज कर दिया था। इस लाठीचार्ज में उस समय विधानसभा सदस्य रहे, सलिल विश्नोई का पैर पुलिस की लाठी की चोट के कारण टूट गया था। इससे उन्हें महीनों तक बेड पर रहना पड़ा था और काम काफी प्रभावित हुआ था।
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घटना के बाद 25 अक्टूबर 2004 को दी थी नोटिस

लाठीचार्ज की घटना और उसमें बुरी तरह से घायल होने के बाद, उन्होंने 25 अक्टूबर 2004 को विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना की नोटिस दी थी।

लम्बी चली थी सुनवाई, लेकिन नहीं मिली सजा

विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना मामले की नोटिस पर उस समय करीब डेढ़ साल तक सुनवाई हुई थी। इसके बाद इन पुलिसकर्मियों को सर्वसम्मति से दोषी पाया गया था, लेकिन आज तक सजा नहीं हुई थी।
पुलिस कर्मियों को लेकर शुरू हुई राजनीति

पुलिसकर्मियों को सजा सुनाने और विशेष जेल में भेजने के मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गई है। विधानसभा में नेता विरोधी दल अखिलेश यादव ने इसे गलत करार दिया है। उन्होंने कहा कि इससे गलत परंपरा पड़ेगी। उधर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना और उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने इसे उचित बताया है। आपको को बता दे कि विधानसभा में इस तरह की विशेष अदालत साल 1962 में लगी थी। तब विधानसभा में कुछ अधिकारियों को कारावास की सजा सुनाई थी।
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