गौर करने वाली बात है कि प्रदेश में रोजाना पीक ऑवर्स में बिजली की मांग अमूमन 20 हजार मेगावाट से ऊपर रहती है, पर इस वक्त कोयले की कमी से कुल उपलब्धता 17000-18000 मेगावाट है। बिजली आपूर्ति दुरुस्त रखने के लिए एनर्जी एक्सचेंज से 1400-2500 मेगावाट अतिरिक्त बिजली खरीदनी पड़ रही है। इसके लिए करीब प्रति यूनिट 17 रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जबकि पावर कॉर्पोरेशन को एक यूनिट बिजली बनाने में सिर्फ 6 रुपए यूनिट ही खर्च करना पड़ता है। प्रदेश में घरेलू बिजली उपभोक्ताओं की कुल संख्या 2.75 करोड़ है और वर्ष 2020-21 का कुल राजस्व 21983 करोड़ रुपए है।
ताज्जुब की बात दुनिया में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 2429 यूनिट है जबकि भारत में यह 734 यूनिट है। अब अगर यूपी की बात करें तो यह आंकड़ा 606 यूनिट प्रति व्यक्ति आता है। अब आप सोच सकते हैं कि यूपी में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत कितनी कम है। और यह खपत सरकार पूरी नहीं कर पा रही है। अब कोयले के साथ सोलर एनर्जी, हाइड्रो पावर और विंड पावर से बिजली पैदा करना हमारी जरूरत बन बई है। सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। सौर ऊर्जा से वर्ष 2022 तक 10700 मेगावॉट बिजली बनाने का लक्ष्य तय किया गया है। वहीं, पवन ऊर्जा से बिजली बनाने के लिए यूपी के 14 जिलों को चुना गया है। अब अगर पानी की बात करें तो सूबे में 71400 किमी लंबी नहर, नहर पट्टी, जलाशयों का उपयोग बिजली उत्पादन में करे तो लगभग 13500 मेगावाट बिजली उत्पादन हो सकता है। इन तीनों से बनी बिजली काफी सस्ती होती है। इससे उपभोक्ताओं को फायदा मिल सकेगा। यूपी सरकार को बिजली के इन विकल्पों पर गंभीरता दिखानी होगी ताकि लोगों का रुझान भी इस ओर बढ़े, क्योंकि बिन बिजली सब सून है। (संकुश्री)