इसके शोध के लिए प्रशनपत्रों को तैयार किया जाएगा। उसके बाद सीआरपीएफ जवानों से वह सवाल किए जाएंगे। कुछ रिसर्च एसोसिएट भी इसका हिस्सा बनेंगे। अंत में रिपोर्ट सीआरपीएफ को डीजी को दे दी जाएगी। यह शोध लखनऊ व आसपास के जिलों में बने सीआरपीएफ के कैंप में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू होगा। इसके बाद पूर्ण रूप से ऐसे शोध किए जाएंगे। इस पर सीआरपीएफ प्रवक्ता का कहना है कि शुरू हो रहे इस पायलट प्रोजेक्ट के परिणामों को देखते के बाद व्यापक प्रारूप को अंतिम रूप देने के लिए एक रणनीति बनाई जाएगी। इसके तहत एक पूर्ण शोध किया जाएगा और उसका उद्देश्य प्रतिक्रिया का मूल्यांकन एवं आकलन करना होगा तथा उसके मुताबिक आगे की प्रक्रिया की जाएगी।
लंबे समय तक तैनाती के चलते जवानों और उनके परिवारों पर पड़ने वाले प्रभाव का किसी बाहरी एजेंसी द्वारा किए जाने वाला ये अपनी तरह का पहला शोध है। सीआरपीएफ में करीब 3.25 लाख कर्मी हैं, जिन्हें मुख्य रूप से उग्रवादरोधी, नक्सलरोधी, आतंकवादरोधी अभियानों में लगाया जाता है। इन्हें कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए भी ड्यूटी पर तैनात किया जाता है। ऐसे में कड़ी ड्यूटी होने के कारण इनके अंदर तनाव पैदा हो जाता है। यह तनाव न सिर्फ उनपर बल्कि इनके परिवारवालों पर भी देखने को मिलता है।